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________________ xxii वास्तु चिन्तामणि प्रकरण शुद्ध जल प्राप्ति के लिए है। पुष्प- वाटिका का उपयोग गृह सज्जा के साथ ही पूजनादि कार्यों हेतु पुष्प संचय भी है। शारीरिक शुद्धि के लिए स्नानागार एवं शौचालय की आवश्यकता होती है। गृहस्थों के लिए मानसिक शुद्धि के साथ शारीरिक शुद्धि भी परम आवश्यक है। इसके बिना देवपूजा, मुनि दान आदि कार्य नहीं किए जा सकते। सुस्वास्थ्य के लिए भी यह अनिवार्य है। जीवन यापन के लिए यद्यपि कृषि को प्राथमिकता दी गई है तथापि कीटनाशकों का निषेध भी किया है। अन्न प्राप्ति के लिए कृषि अनिवार्य कर्म है। विविध वस्तुओं के उत्पादन के लिए उद्योगों का संचालन भी अनिवार्य है। धनोपार्जन के लिए वाणिज्य अथवा सेवाकर्म अत्यंत आवश्यक है। सर्वत्र वही ध्यान रखना चाहिए कि हमारा क्रिया-कलाप विवेक पूर्वक हो तथा त्रस व स्थावर हिंसा का परहेज किया जाए। गृह निर्माण के कार्यारम्भ करने से पूर्व यदि वास्तु शास्त्र के नियमों को भली प्रकार समझ लिया जाए तो यह स्वामी के लिए हितकारक होता है। एक अच्छी वास्तु का निर्माण स्वामी को सुख-समाधान तथा शांति प्रदान करता है। उपयुक्त वास्तु का निर्माण करने के पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए - 1. उपयुक्त दिशा का निर्धारण 2. उपयुक्त भूमि का चयन 3. उपयुक्त दिशाओं में रचना विन्यास का क्रम 4. वास्तु का आकार एवं आयु (मजबूती) वास्तु निर्माण का कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व भूमि का शोधन, परीक्षण इत्यादि कार्य कर लेना आवश्यक है। निर्माण सामग्री अपनी स्थिति के अनुरुप उत्कृष्ट किस्म की लेना लाभदायक सिद्ध होता है। भूमि का धरातल, क्षेत्र, परिकर इत्यादि का विचार करके ही निर्माण की जाने वाली वास्तु का उपयुक्त मानचित्र, अच्छे जानकार अथवा मानचित्रकार अथवा इंजीनियर से बनवाना चाहिए। कार्यारम्भ करने के पूर्व शिल्पकार के पास निर्माण से संबंधित सभी उपकरणों का होना आवश्यक है। प्राचीन काल में भी शिल्पकार इन उपकरणों का प्रयोग करते थे :1. दृष्टि सूत्र 2. गज 3. मूंज की डोरी 4. सूत का डोरा 5. अवलम्ब 6. गुनिया (काठ कोन) 7. साधणी रिवल) 8. विलेख्य (प्रकार) निर्माण कार्यारम्भ उचित मुहूर्त में किया जाना चाहिए। राशि, ग्रह, .. नक्षत्रों की अनुकूलता को ध्यान में रखकर किए गए निर्माण कार्यारम्भ से
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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