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वास्तु चिन्तामणि जैनाचार्यों ने भी अनेकों ग्रंथों की रचना की है। श्रावकाचार के ग्रंथों में भी यथावसर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशन के द्वारा आचार्यों ने विषय स्पष्ट किया है। सभी आचार्यों की मूल भावना यही रही है कि श्रावक का जीवन निराकुल होते।
वर्तमान में इस विषय पर सामान्यत: कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं होते हैं। परम गुरुभक्त युवास्न श्री नीलमजो अजमेरा ने एक बार इसी प्रकार का प्रश्न उपस्थित किया कि जब जैन धर्मशास्त्रों में मन्त्र, तन्त्र, नक्षत्र विज्ञान, ज्योतिष इत्यादि विषयों पर ग्रंथ उपलब्ध हैं तो वास्तु सदृश महत्वपूर्ण विषय पर नथ क्यों नहीं हैं ? उनका प्रश्न स्वाभाविक तो था ही, समयानुकूल भी था। वर्तमान काल में वास्तु शास्त्र पर अनेकों लेखकों के ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं। जैन आगम सम्मत ग्रंथ की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए मैंने इस विषय पर लेखनी प्रयोग करने का विचार किया।
सम्पूर्ण जैन वाङ्मय अथवा द्वादशांग वाणी का मूल सर्वज्ञ जिनेन्द्र प्रभ की दिव्य ध्वनि में है। भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण होने के पश्चात् छह शताब्दियों तक जिनवाणी का वृहद् ज्ञान श्रुति-स्मृत्ति रुप में चलता रहा। भद्रबाहु अंतिम श्रुत केवली थे। उन्हें सम्पूर्ण द्वादशांग का ज्ञान था। काल के प्रभाव से ज्ञान क्षीण होने लगा। लगभग छह शताब्दियों के उपरांत शेष ज्ञान को महान आचार्य श्री धरषेण ने अपने सुशिष्यों को लिखवाना प्रारंभ किया। उसी परम्परा में आगे चलकर सभी विषयों पर ग्रंथों की रचना की गई। श्रावकाचार ग्रंथों का भी इनमें समावेश था। गृह वास्तु, मन्दिर वास्तु, पूजन, विधान इत्यादि ग्रंथों की भी रचना समय-समय पर की गई।
श्रावकाचार ग्रंथों में श्रावक या गृहस्थ को लक्ष्य में रखकर विविध ग्रंथों की रचना की गई हैं। श्रावक स्वयं तो धर्माचरण करता ही है साथ ही अपने द्वारा अर्जित धन से परिवार का पालन पोषण भी करता है। धर्म - कार्य जैसे पूजा, दान, वैयावृत्ति आदि कार्यों में भी उसका द्रव्य व्यय होता है। मनि परम्परा को अबाधित रुप से चलाने के लिए सद्गृहस्थों का धर्मानुकूल आचरण अत्यंत आवश्यक है।
श्रावकाचार ग्रंथों में प्रमुख ग्रन्थ उमास्वामी श्रावकाचार में आचार्य श्री ने वास्तु संरचना में दिशाओं का उल्लेख किया है। गृह चैत्यालय एवं प्रतिमा के आकार आदि के विषय में भी विस्तृत विवरण दिया गया है। आचार्य सोमदेव के त्रिवर्णाचार में तथा कुन्दकुन्द श्रावकाचार एवं प्रतिष्ठा पाठ आदि ग्रंथों में वास्तु संरचनाओं का प्रकरणानुसार उल्लेख मिलता है। आचार्य वसुनन्दि कृत वस्तु विद्या एवं श्रावकाचार तथा सुखानन्द पति के ग्रंथ वास्तुशास्त्र में भी वास्तु