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________________ वास्तु चिन्तामणि लेखकीय मनोगत वास्तु चिन्तामणि ग्रंथ की रचना करते समय हमने श्रावकों अर्थात् सद्गृहस्थों की जीवन चर्या को लक्ष्य में रखा था। समस्त जैन वाङ्गमय में धर्म को दो भागों में विभाजित किया जाता है XIX 1. अनगार अर्थात् निग्रंथों या मुनियों के लिए धर्म 2. सागार अर्थात् गृहस्थों अथवा श्रावकों के लिए धर्म जिनवाणी के अथाह सागर में श्रावकों की जीवन चर्या पर प्रकाश डालने वाले ग्रंथ श्रावकाचार ग्रंथ कहे जाते हैं। सागार धर्मामृत में पं. आशाधरजी लिखते हैं: शृणोति गुर्वादिभ्यो धर्म मिति श्रावकः - सा.ध. / स्वोपज्ञ टीका /1-15 जो श्रद्धापूर्वक गुरु आदि से धर्म श्रवण करता है, वह श्रावक है। श्रावक वहीं है जो श्रद्धावान, विवेकवान एवं क्रियावान हो। ऐसा गृहस्थ ही परंपरा से मोक्ष मार्ग पर चलकर मुक्ति को प्राप्त करता है । गृहस्थ अथवा सागार का अर्थ है गृहवासी या गृह सहित | ऐसा व्यक्ति निःसंदेह परिवार आजीविका उपार्जन एवं अन्य लौकिक क्रियाओं में आबद्ध होता है। इनमें वह सुखी दुखी भी होता है। ऐसे ही गृहस्थ अपना आचार विचार शुद्ध रखकर देव पूजा आदि कर्तव्यों को करते हुए श्रावक (या सागार) धर्म का पालन करते हैं। - जो श्रावक आकुलता रहित होते हैं, वे अपने कर्तव्यों का यथाशक्ति सुचारु रूपेण पालन करते हैं किन्तु निरंतर कष्ट, चिन्ता कलह, रोग, दरिद्रता इत्यादि दुखों से आकुलित गृहस्थ अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाते । प्राचीन ग्रंथ कषाय पाहुड़ में प्र 82 / 100 / 2 में उल्लेख है। दाणं पूजा सीलमुववासो चेदि सावयधम्मो दान, पूजा, शील और उपवास ये चार श्रावक के धर्म हैं। ऐसे गृहस्थों की आकुलता या दुखों के कारणों में दोषपूर्ण आवासगृह का भी प्रमुख स्थान है। इन दोषों से मुक्त वास्तु, उपयोगकर्ता को सुख-समाधान की प्राप्ति कराती है। पूर्व में श्रावक की परिभाषा से यह स्पष्ट है कि श्रावक अपना मार्गदर्शन सद्गुरुओं से प्राप्त करता है । अतएव वास्तु विषय पर प्राचीन
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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