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वास्तु चिन्तामणि
दिशाओं का शुभाशुभ विचार दिशाओं का निर्धारण सूर्योदय की दिशा के आधार से किया जाता है। सूर्योदय की दिशा पूर्व कहलाती है। सूर्यास्त की दिशा पश्चिम दिशा कही जाती है। इनके अतिरिक्त सूर्योदय की दिशा से बायें ओर समकोण पर उत्तर दिशा तथा दायीं ओर समकोण पर दक्षिण दिशा होती है। इनके मध्य में चार विदिशाएं होती है। उत्तर एवं पूर्व के मध्य ईशान विदिशा होती है। पूर्व एवं दक्षिण के मध्य आग्रेय विदिशा होती है। दक्षिण एवं पश्चिम के मध्य नैऋत्य विदिशा होती है। पश्चिम एवं उत्तर के मध्य वायव्य विदिशा होती है। इन अष्ट विशाओं का मानव जीवन पर प्रभाव इस प्रकार पड़ता है1. पूर्व - पितृ दिशा है। मकान का पूर्वी खुला भाग पूरी तरह बँक
देने पर मकान स्वामी रहित हो जाता है अर्थात् परिवार के
पुरुष प्रधान सदस्य का अवसान हो जाता है। 2. आग्नेय - स्वास्थ्य प्रदाता है। 3. दक्षिण - समृद्धि, सुख तथा संतोषदायक है। (यदि अन्य दिशाओं के
साथ संतुलन कर इसे भारी बनाया जाता है) नैऋत्य- व्यवहार, मनोभावना तथा अकालमृत्यु के लिए उत्तरदायी
5. पश्चिम- प्रगति, उत्कर्ष तथा प्रतिष्ठा प्रदाता है। 6. वायव्य - अन्य लोगों से सम्बन्धों का नियमन करता है जो हार्दिकता
एवं आतिथ्य मे निमित्त है। 7. उत्तर - मातृ दिशा है। यह स्थान रिक्त म रखे जाने पर मकान
निर्जन हो जाता है क्योंकि परिवार की महिला सदस्यों की
मृत्यु हो जाने से परिवार बगैर स्त्रियों का हो जाता है। 8. ईशान - पुरुष वंश की निरंतरता को सुनिश्चित करता है। मकान में
इस दिशा को काट देने से पुत्र नहीं होते।