________________
36
वास्तु चिन्तामणि
होता है। अर्थिक, शसिरिक एक पारिवारिक दृष्टि से वह दुखी रहता है। अतएव इसे अशुभ माना जाता है। इसी कारण मकान में दक्षिण में दरवाजे, खिड़की नहीं रखे जाना चाहिए। कदाचित् दक्षिण दिशा में ज्यादा भार तथा उत्तर एवं पूर्व में कम भार रखने पर संतोष, समृद्धि प्रदाता भी होता है।
पश्चिम दिशा West : पश्चिम दिशा अर्थात् पाश्चात्य या पीछे की दिशा। इसका स्वामी वरूण माना जाता है। इसका प्रभाव चंचल होने से घर, दुकान आदि पश्चिमाभिमुखी होने पर लक्ष्मी चंचल या अस्थिर होती है। इस कारण यह दिशा अपेक्षाकृत कम उपयोगी मानी जाती है।
पूर्व और दक्षिण के मध्य आग्नेय दिशा है। इसमें अग्नि तत्व का स्थान माना जाता है। दक्षिण और पश्चिम में नैऋत्य दिशा है जिसे नैऋत्य का स्थान माना गया है। पश्चिम और उत्तर के मध्य वायव्य दिशा वायु का स्थान मानी गई है। पूर्व एवं उत्तर के मध्य ईशान दिशा है। दोनों शुभ दिशाओं के मध्य होने से इसे ईश्वर तुल्य स्थान माना जाता है।
मनुष्य के रहने का निवास, मदिर, प्रासाद, दुकान, कारखाना, कार्यालय, आदि वास्तु निर्माण करते समय यदि वास्तुशास्त्र के अनुकूल निर्माण कराये जाये तो वे वास्तुएं सुख, समृद्धि, शांति तथा आनंद को प्रदान करने वाली होती हैं।