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वास्तु चिन्तामणि
वास्तु का दिशा विचार
Direction of Vaastu
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जैसा कि पूर्व में वर्णित है, प्राकृतिक रूप से चार प्रमुख दिशाएं, चार विदिशाएं तथा ऊर्ध्व एवं अधो, इस प्रकार दश दिशाएं मानी जाती हैं। प्रत्येक दिशा का अपना अपना महत्व एवं गुणधर्म निम्नानुसार है :
पूर्व दिशा East : सूर्योदय की दिशा पूर्व कहलाती है। यह अभ्युदय कारक है। प्रातः काल प्राप्त होने वाली सूर्य रश्मियां मानवीय चेतना में जागृति एवं स्फूर्ति का संचार करती हैं। उत्साह का संवर्धन करती है। मस्तिष्क को तरोताजा बनाती हैं। आयु, आरोग्य में वृद्धि करती हैं। यदि घर के दरवाजे एवं खिड़कियां पूर्वाभिमुखी हों तो निश्चय ही वे सूर्य की समग्र चेतना का घर में संचय करती हैं।
उत्तर दिशा North उत्तर दिशा का भी वास्तुशास्त्र की अपेक्षा से बड़ा महत्व माना जाता है। उत्तर दिशा कुबेर की मानी जाती है। इस दिशा में मुख करके विचार करने से शंका का समाधान शीघ्रता से हो जाता है अतएव चिंतन के लिए सामान्यतः उत्तर दिशा की ओर ही मुख रखा जाता है। इसके अतिरिक्त नक्षत्रमंडल में विशिष्ट स्थान रखने वाला ध्रुव तारा सदैव उत्तर दिशा में ही स्थिर रहता है जबकि अन्य तारे दिशा परिवर्तित कर लेते हैं। इस तरह यह दिशा स्थिरता की द्योतक है।
उत्तर दिशा में स्थित विदेह क्षेत्र में सदैव बीस तीर्थंकर विद्यमान रहते हैं। इनके स्मरण मात्र से मन को आनंद होता है। शुभ विचार उत्पन्न होने से अनायास ही पुण्यासद होता है। कुबेर का वास्तव्य उत्तर में माना जाने से इसे धन संपत्ति दायक माना जाता है। घर के दरवाजे एवं खिड़कियां उत्तर की ओर रहने के कारण घर पर कुबेर की सीधी दृष्टि पड़ने से विपुल धन-धन्य, वैभव तथा आर्थिक सम्पन्नता की प्राप्ति होती है।
पूर्व और उत्तर ये दोनों दिशाएं लौकिक तथा पारमार्थिक दृष्टि से ध्यान मनन, चिंतन तथा शुभकार्य एवं वाणिज्य के लिए शुभ एवं लाभदायक होती
हैं !
दक्षिण दिशा South: इस दिशा का स्वामी यम माना जाता है। यम का अर्थ संहारक या नाशक है। दक्षिण का अर्थ विलासिता भी है, इस कारण व्यक्ति मौजमस्ती में उलझकर व्यसनों में पड़ जाता है। तथा अंततः पतित