________________
वास्तु चिन्तामणि
भूमि शोधन विचार
जो भूमि नदी के तट में होने से कटाव में हो जिसमें बड़े-बड़े पत्थर हो, जिसमें पर्वतों का अग्र भाग मिला हो, सछिद्र हो, टेढ़ी-मेढ़ी हो, सूपाकार अर्थात् आगे चौड़ी, पीछे संकरी हो, जिसमें दिशाओं का निर्णय न हो, निस्तेज हो, मध्य में विकट रूप हो, जिसमें सांपों की बामियां हो, कंटीले वृक्ष युक्त हो, बड़े-बड़े वृक्षों वाली हो, बहुत रेतीली हो, भूतपिशाचादि का वास हो, ऐसी भूमि को वास्तु निर्माण के लिए अनुपयुक्त समझकर त्याग देना चाहिए।
यदि भूमि पर श्मशान अपया श्मशान का मार्ग हो, दलदल (कीचड़) उत्पन्न करने वाली हो, कटी फटी या दरार युक्त हो, जमीन के मध्य से कोई नाला या नदी जाती हो, जमीन पर अस्थि, कोयला, बाल आदि अशुभ द्रव्य पड़े हो अथवा जमीन तक जाने का मार्ग न हो तो ऐसी भूमि भी वास्तु निर्माण के लिए निरुपयोगी समझकर त्याग देना चाहिए।
___ यदि भूमि में नेवला, खरगोश रहते हो तो वह भूमि उत्तम है। वहां पर वास्तु निर्माण कर्ता को पराक्रमी पुत्रों की प्राप्ती होती है।
यदि भूमि पर लोमड़ी, सियार आदि प्राणी रहते हों तो यह भी अशुभ हैं यहां निर्माण करने से दरिद्रता का आगमन होता है।
यदि भूमि पर शेर, वाघ आदि वन्य प्राणी रहते हो तो आसुरीवृत्ति की भूमि होने से यह भी त्याज्य है।
वम्मइणी वाहिकरी ऊसर भूमीइ हवइ रोरकरी। अइफुट्टा मिच्चुकरी दुक्खकरी तह य ससल्ला।।
- वास्तुसार प्र. 1 गा. 10. दीमक वाली भूमि पर भवन निर्माण करने से व्याधियां आती हैं। खारी भूमि निर्धनता उत्पन्न करती है। फटी हुई जमीन पर निर्माण की गई वास्तु मृत्युकारक है। जमीन में हड्डी आदि शल्य दुख उत्पन्न करती हैं।
यदि भूमि में अस्थि आदि शल्य हों तो उसका शोधन करना आवश्यक है क्योंकि ये अति दुखदायक होती हैं।
बकचतएहसपज्जा इअ नव वण्णा कमेण लिहियव्वा। पुव्वाइदिसासु तहा भूमि काऊण नव भाए।1।। अंहिमतिऊण खडियं विहिपुव्वं कन्नाया करेदाओ। आणाविज्जइ पण्डं पण्हा इह अक्रवरे सल्लं 111211
- वास्तुसार प्र.