SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तु चिन्तामणि भूमि परीक्षण विधि क्रं. 2 अह सा भरिय जलेण य चरणसयं गच्छमाण जा सुसइ। वि-दु- इग अंगुल भूमि अहम मज्झम उतमा जाण।। वास्तुसार प्र. ] गाथा 4 उपरोक्त 24 अंगुल लम्बे, चौड़े एवं गहरे गढ्ढे में लबालब जल भर दें तथा तुरंत 100 कदम जाकर वापस लौटकर देखें। यदि गढ्ढे में जल तीन अंगल कम हो जाय तो वह भूमि स्वामी के लिए अधम फलदायी होगी अर्थात् परिवार को दुखदायक होगी। यदि दो अंगुल पानी सूख जाये तो वह भूमि स्वामी के लिए मध्यम फलदायी होगी। यदि एक अंगुल पानी सूखे तब वह भूमि स्वामी के लिए उत्तम फलदायी होगी अर्थात् सुखसमाधान कारक होगी। भूमि परीक्षा विधि क्रं. 3 भूमि में एक फूट नाप का गहारा गढ़ा खोदकर उसे जल से पूरा भर देवें। अगले दिन प्रात: (अर्थात् 24 घंटे बाद) उसका निरीक्षण करें। यदि उसमें कुछ पानी शेष रहे तो भूमि को उत्तम फलदाता समझें अर्थात् गृहस्वामी को वहा उत्तम फल और धन धान्य की विपुलता से प्राप्ति होगी। यदि गड्ढे में जल शेष न रहे तो इसे मध्यम फलदाता समझे। यदि जल सूखकर उसमें दरार सी पड़ जाए तो यह अधम फल दाता भूमि है। यह परिवार के लिए अशुभ है तथा दुख- दरिद्रता देने वाली है। अथक श्रम के उपरांत भी परिवार की आजीविका अत्यंत दुष्कर हो जाएगी। भूमि परीक्षा विधि क्रं. 4 उपरोक्त गढे में संध्या समय कुछ फूल डालें तथा ऊपर से उसमें एक घड़ा जल भर दें! यदि जल डालने पर फूल तैरने लगें तो भूमि उत्तम, शुभफल दायक, सुखसमृद्धि दायी समझना चाहिए। यदि जल डालने से फूल तैरे नहीं तथा पानी में ही डूबे रहें तब इसे अधम, अशुभफलदायक दुखदायी समझना चाहिए। ऐसी भूमि पर किसी भी प्रकार की वास्तु का निर्माण न करना ही श्रेयस्कर है।
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy