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वास्तु चिन्तामणि
भूमि परीक्षण विचार
Selection of Land for Construction
वास्तु शास्त्र सिद्धान्तों के अनुरूप हमें सर्वप्रथम उस भूमि का चयन करना आवश्यक है, जहां पर निर्माण कार्य कि जाता है। सर्वप्रथम भूमि के लक्षणों का विचार कर यह निश्चित किया जाता है कि यह भूमि वास्तु निर्माण के लिए उपयुक्त है अथवा अनुपयुक्त। इस कार्य के लिए भूमि के रुप, रंग, गंध तथा धरातल के उतार-चढ़ाव की दिशा का विचार करना आवश्यक होता है। तदुपरांत ही निर्माण कार्य किया जाना चाहिए।
भूमि परीक्षा विधि क्र. 1
चउवीसंगुलभूमी खणेवि पूरिज्ज पुण वि सा गत्ता । तेणेव महियाए हीणाहियसमफला गया।
वास्तुसार प्र. 1 गाथा 3
जिस भूमि पर भवन निर्माण करना है, उस भूमि के मध्य में 24 अंगुल प्रमाण लंबा तथा इतना ही चौड़ा एवं गहरा गड्ढा खोदें तथा उससे निकली हुई मिट्टी पुन: उसी गड्ढे में भरें। यदि पूरा गड्ढा भरने के उपरांत भी मिट्टी शेष रह जाये, तब वह भूमि स्वामी के लिए उत्तम फल प्रदाता जाननी चाहिए। ऐसी भूमि पर वास्तु निर्माण कर्ता को धन धान्य एवं सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यदि वह उसी गड्ढे में भरने
पर कम पड़ जाये तब भूमि का फल अधम समझना चाहिए। अर्थात् भवन स्वामी को दुःख
दारिद्रय का सामना करना पड़ेगा ।
यदि वह मिट्टी सम रहे अर्थात् न बढ़े न घटे, तब भवन निर्माण कर्ता को मध्यम फल प्रदाता जाननी चाहिए। अर्थात् भवन स्वामी की परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आयेगा।
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