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भूमि परीक्षा विधि क्र. 5
हलाकृष्टे तथोदेशे सर्व बीजानि वापयेत् । त्रि- पंच- सप्त रात्रेण न प्ररोहन्ति तान्यपि ।। उप्त बीजा त्रिरात्रेण सांकुराशोभना मही । मध्यमा पंच रात्रेण, सप्त रात्रेण निन्दिता । । तिलान्वा वापयेत्तत्र, यवांश्चापि सर्षपान् । अथवा सर्वधान्यापि वापयेच्च समन्ततः । । यत्र नैव प्ररोहन्ति तां प्रयत्नेन वर्जयेत् ।
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वास्तु चिन्तामणि
( विश्वकर्मा प्रकाश पृ. 10 - 11 )
जिस भूमि पर वास्तु निर्माण करना हो उस भूमि को हल जोतकर उसमें सभी प्रकार के अनाज बो देवें । यदि बोए हुए बीज में तीन रात्रि में अंकुर आ जाए तो वह भूमि श्रेष्ठ मानना चाहिए। इस भूमि पर वास्तु निर्माणकर्ता सुख प्राप्त करेगा। यदि पांच दिन में अंकुर निकलें तो इसे मध्यम फलदायी समझना चाहिए। यदि सात दिन में अंकुर निकलें तो यह भूमि भवन निर्माता के लिए अधम फलदायी तथा दुखदायी होगी। यदि उस भूमि पर चारों ओर बीज बोएं तो जितनी भूमि पर बीज न उगें, उस भूमि को संकोच रहित होकर छोड़ देना चाहिए।
भूमि परीक्षा विधि क्र. 6
प्रदोषे कंट संद्धतामिस्त्रियां च तद्भुवि । ॐ हूँ फडित्यस्त्रमन्त्र लातायामाम भाजने । । रक्तां पीतासितां न्यस्य वर्तिं सर्वाः प्रबोध्यताः । अनादि सिद्ध मत्रेण मन्त्रयेदा घृतक्षयात् । । शुद्धं ज्वलंतीषु शुभं विध्यातीष्वशुभंवदेत् । प्रतिष्ठा विधि दर्पण पृ.4
संध्या समय जब कुछ अंधेरा होने लगे तब थोड़ी जमीन के चारो ओर परकोटे की भांति चटाई बांध दें ताकि उसमें हवा का प्रवेश न हो सके। तदुपरांत उस जमीन पर 'ॐ हूं फट् ' इस अस्त्र मंत्र को लिखें। उस लिखे हुए मंत्र वाक्य पर मिट्टी का कच्चा घड़ा रखकर उस पर एक कच्ची मिट्टी का दीपक रखें एवं उसे घी से पूरा भर देवें। उसमें चार बाती, पूर्व में सफेद, दक्षिण में लाल, पश्चिम में पीला तथा उत्तर में काली बाती बनाकर दीपक रख देवें । उन बातियों को निम्न महामंत्र से मंत्रित करें।