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वास्तु चिन्तामणि
ही दाने दाने को मोहताज हो गए। कितने ही दुर्घटनाग्रस्त होकर अकालमृत्यु को प्राप्त हुए अथवा विकलांग हो गए। तात्पर्य यह है कि भवन, जिन प्रतिमा, चैत्यालय, जिन मंदिर आदि जड़ एवं प्रभावहीन नहीं है वरन् उनका प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। भक्त, स्वामी, निर्माणकर्ता तथा उसके परिवार पर इन वास्तु संरचनाओं का निश्चित ही अनुकूल या प्रातकूल प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार के प्रभावों के मूल कारणों का अन्वेषण एवं अध्ययन वास्तु विज्ञान के इस ग्रंथ में करने का लघु प्रयास किया गया है। यह तो सुधी पाठक ही बताएंगे कि लेखक अपने श्रम में कहां तक सफल हुआ।
प्रज्ञाश्रमण देवनन्दि मुनि