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________________ ज वास्तु चिन्तामणि | गरीबरखाना आदि कितने ही नामों से सम्बोधित करते हैं। इनमें से प्रत्येक का शुभाशुभ प्रभाव उसके स्वामी एवं उपयोगकर्ता पर निश्चित रुप से पड़ता ही है। हम प्रत्यक्ष ही अनुभव करते हैं कि किसी मकान में प्रवेश करते ही मन प्रसन्नता से खिल उठता है। जबकि किसी अन्य मकान में प्रवेश करने पर एक अजीब सा भारीपन लगता है। किसी कमरे में जाने पर ताजगी महसूस करते हैं तो कही घुटन। किसी भकान का निवासकती, चाहे वह मालिक हो अथवा किरायेदार, मकान के उपयोग करते समय विपुल धनसम्पत्ति की प्राप्ति करता है तो किसी मकान में निरन्तर कलह का वातावरण बना रहता है। किसी मकान में प्रवेश करने के उपरान्त अकाल मृत्यु एवं दुर्घटनाओं का सिलसिला चल निकलता है। किसी मकान में प्रमुख पुरुष अथवा प्रमुखमहिला निरन्तर रोगी बने रहते हैं। किसी भवन की संरचना अत्यंत विशाल होने पर भी उसके निवासी वंशहीन हो जाते हैं तथा उसका कोई उपयोगकर्ता न होने से महल खंडहरों में परिवर्तित हो जाते हैं। किसी विशिष्ट भूखण्ड पर निर्मित उद्योग अनवरत लाभ देता है तो कई उद्योग कई-कई बार बंद होते हैं तथा निरन्तर हानि देते हैं, यहां तक कि स्वामी दिवालिया हो जाता है। वास्तु के मनुष्य जीवन से सम्बन्ध को दर्शाने वाले असंख्य उदाहरण मिलते हैं जो उसकी अनुकूलता एवं प्रतिकूलता दिखलाते हैं। देवालयों के प्रकरण में स्थिति इनसे भिन्न नहीं है। आपने स्वत: अनुभव किया होगा कि कुछ विशेष स्थानों पर मन्दिरों में विपुल धनागम तो होता ही है, दर्शनार्थियों का आवागमन भी निरन्तर बना रहता है तथा भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इसी कारण कुछ विशेष स्थानों को अतिशय क्षेत्र कहा जाता है। अतिशय क्षेत्र से तात्पर्य ऐसे ही स्थानों से है जहां देवालयों में किसी विशेष जिनेन्द्र देव की प्रतिमा अथवा उनके यक्ष-यक्षिणी या क्षेत्रपालादि देवों की विशिष्ट प्रतिमा के कारण भक्तों की मनौतियां पूरी होते देखी जाती हैं। कहीं-कहीं पर भूत-प्रेत की बाधा स्वयमेव समाप्त हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों में कई बार प्रत्यक्ष अनुभव देखने में आता है कि किसी विशेष प्रतिमा के स्थानान्तरण करने से अतिशय में कमी आ जाती है। ऐसा क्यों होता है? जब सभी प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं, तो किसी विशेष प्रतिमा में अतिशय क्यों? क्यों किसी विशेष मंदिर को ही अतिशय क्षेत्र कहा जाता है? क्यों किसी प्रतिमा विशेष के कारण जंगल में मंगल हो जाता है? इसके विपरीत अनेकों ऐसे उदाहरण आपको अपने पास ही मिल जायेंगे जिनमें जिनालय निर्माणकर्ता निर्वंश होकर नाम हीन हो गए। कितने ही एक या दो पीढ़ी में
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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