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वास्तु चिन्तामणि
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अर्हन्त पूजा
अर्हन्त श्रुत सूरि चरणों में, में पुष्प सुगन्धित ले आया । आह्वानन स्थापना विधि करके, जिन चरणों में मन भाया । । अनन्तगुणों के साथ प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया । ।।। । ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरुः । अत्र अवतर- अवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरुः ! अवतिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरुः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं । ।
गंगा नदी का नीर भरकर, प्रासुक करके मैं लाया। जन्म मृत्यु जरा मिटावन, प्रभु जी मैं ढिग आया। तुम अनन्तगुणों के साथ प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुरख कथा ||2|| ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो जन्मजरा मृत्यु विनाशनायजलं निर्वपामीति स्वाहा।
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काश्मीर अगरु चन्दनादि ले, घिसकर प्रभुजी ले आया । सुगन्धित देह के प्राप्त करन को, जिन जी चरणों में आया ।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया । 13 1 ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो संसार ताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा |
शालि धान के शुद्ध बनाकर, प्रासुक अक्षत ले आया । अखण्ड अक्षय सुख पाने को, अक्षत को मैं ले आया ।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया | 14 || ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा | चम्पा चमेली केतकी पुष्प सुगन्धित मैं लाया। काम बाण के नाश करन को प्रासुक जल से धो लाया। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया । विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया | 15 || ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा |