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वास्तु चिन्तामणि
दर्भपूले से भूमि संमार्जन करें अग्निकुमार देव को पूजूँ मन वच काय | अष्ट तत्व्य से पूजएँ उम को करो सहाय ||10|| ॐ ह्रीं हे अग्नि कुमार देव अत्र आगच्छ आगच्छ इदं अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा |
ॐ ह्रीं हे अग्निकुमारदेव भूमिं ज्वालय ज्वालय अं हं सं वं झं यक्ष फट् स्वाहा।
दर्भ की पूली जलाकर रखें।
सहस्र नाग स्थापना करूँ अर्चू मन हर्षाय । जलांजलि यहाँ देयकर, यज्ञ को करो सहाय ।।] ॥
ॐ ह्रीं हे नागकुमारदेव अत्र आगच्छ आगच्छ इदं अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा । ( ईशान दिशा में जल हाथ में लेकर छोड़े) पुष्पांजलि अर्पण करूँ, पुष्पों को लेकर हाथ। वास्तु यज्ञ प्रारम्भ करूँ, जिन चरणन धरूँ माथ । ॥ 12 ॥ ॥ प्रारम्भ निरुपण
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जिन प्रतिष्ठा विधान में, वास्तु करो विधान । प्रथम अंकुरारोपण करो, करो सुमंगल गान । । । । ध्वजारोहण विधि करो, जिन मन्दिर में जाय । इर्यापचशुद्धि करो, करो अमंगल हान ।।2।। तीन प्रदक्षिणा देय कर, दर्शन करो जिनराय । जिन प्रतिमा का हवन करो, शांति मंत्र का पाठ || ३ || देव - शास्त्र - गुरु आदि की, पूजा करो सुजान | सकलीकरण, मंडपशुद्धि, इन्द्रप्रतिष्ठा जान ।। 4 ।। आद्यविधि सभी करो, फिर करो वास्तु विधान । अष्ट द्रव्य से पूजा करो, मन में शांति लाय ||5|| जिन मन्दिर, गृह आदि में, वास्तु करो सुजान | विघ्न उपद्रव शांत हो, भन में शांति जान ||6||