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वास्तु चिन्तामणि बूंदी लाडू और जलेबी, प्रासुक घृत से बना लाया। क्षुधा वेदनी नाश करन को, नैवेद्य चढ़ाने में आया।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया।।6।। ॐ हीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्योः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं
निर्वपामीति स्वाहा। स्वर्ण दीप में घृत को भरकर, दीप जलाकर ले आया। मोहान्धकार के नाश करन को आरती करने में आया।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया।।7।। ॐ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्योः मोहान्धकार विनाशनाय दीपं
निर्वपामीति स्वाहा! अगर कपूर सुगन्धित चन्दन तेरे चरणों में लाया। धूप दशांगी खेय अग्नि में अष्ट कर्म दहने आया।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया।।8।। ऊँ ही श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं
निर्वपामीति स्वाहा। लौंग सुपारी आम आदि को स्वर्ण पात्र में भर लाया। मोक्ष महल को पाने हेतु तेरे चरणों में आया।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया।।७।। ऊँ ह्रीं श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं
निर्वपामीति स्वाहा। जल चन्दन नैवेद्य आदि का अर्घ्य बनाकर लाया हूँ। रत्नत्रय की प्राप्ति होवे अरज सुनाने आया हूँ।। अनन्तगुणों से सहित प्रभु जी, तेरी पूजा को आया। विघ्न उपद्रव शांत करो तुम, पूजा से मन सुख पाया।।10।। ऊँ ही श्री देवशास्त्र गुरु चरणेभ्यो अनर्घ्यदप्राप्तये अर्घ्य
निर्वपामीति स्वाहा।