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वास्तु चिन्तामणि
शेषनाग चक्र बनने की विधि सर्वप्रथम आठ-आठ कक्ष का वर्गाकार 64 कक्षों का निर्माण करना चाहिये। प्रथम कक्ष में रविवार लिखकर आगे-आगे के वार लिखते जायें। अतिम कक्ष में भी रविवार हो। जहां शनि और मंगलवार आए उसको छूता हुआ नाग बनाएं। प्रारम्भ ईशान से करें। ईशान । पूर्व
आग्नेय
S
उत्तर
-INA
र | सो सो म बु
र । सो म बु |
शार | सो गु | शु श र | सो । शु श र | सोमबु | गु | - शर | सोम बु गु । र । सो | मा। बु | गु | शु श र ।
दक्षिण
वायव्य
पश्चिम
नैऋत्य इस चक्र में जहां-जहां मंगल और शनि आते हैं अर्थात् नाग की आकृति है वहां से खात मुहूर्त करना अनिष्ट है।