________________
वास्तु चिन्तामणि
219
शेषनाग (राहू) चक्र विचार विश्वकर्मा ग्रंथ में यह वर्णन है कि खात मुहूर्त करने के पूर्व शेषनाग चक्र या राहू चक्र का अवलोकन अवश्य ही कर लेना चाहियेईशानतः सर्पति कालसर्पो विहाय सृष्टिं गणयेद् विदिक्षु। शेषस्य वास्तोर्मुख मध्यपुच्छं त्रयं परित्यज्य रखनेच्च तुर्यम्।।
प्रथम ईशान कोण से शेषनाग (राहू) चलता है। जब सूर्य कन्या आदि तीन राशियों में हो तब शेषनाग का मुख पूर्व में होता है। बाद में सृष्टि क्रम से धनु आदि तीन राशियों में दक्षिण में तदनन्तर मीन आदि तीन राशियों में पश्चिम में तथा मिथुन आदि तीन राशियों में नाग का (राहू का) मुख उत्तर में रहता है।
ईशान कोण में नाग का मुख, वायव्य में मध्य भाग या पेट, नैऋत्य कोण में पूंछ रहती है। इन तीन कोणों को छोड़कर चतुर्थ आग्नेय को; में प्रथम खात मुहर्त करना चाहिये।
मुख, नाभि एवं पूंछ वाले स्थान पर खातमुहुर्त करने से नाना प्रकार की हानि होती है। नाग का मुख पूर्व में हो तो खात मुहूर्त वायव्य कोण में करें। नाग का मुख दक्षिण में होने पर खात्त मुहूर्त आग्नेय कोण पर करना चाहिये। नाग का मुख उत्तर दिशा में होने पर खात मुहूर्त नैऋत्य कोण में करना चाहिये।
शेषनाग के मस्तक या मुख पर खातमुहुर्त करने से माता पिता की मृत्यु या मुत्युसम कष्ट होता है। मध्यभाग या नाभि पर खात मुहुर्त करने से राज भय, रोग, पीड़ा होती है। पूंछ भाग में खात मुहुर्त करने से स्त्री, पुत्र, सौभाग्य एवं वंश की हानि होती है। शेष नाग के चक्र के खाली होने वाले स्थान पर प्रथम खात मुहूर्त करने से स्त्री, पुत्र, धन, धान्य, रत्न एवं सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है।