SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तु चिन्तामणि 203 25 +9 22 लब्ध आया तथा शेष 7 रहा। यह तारा का अंक है। ताराओं में 4, 6, 7 शुभ हैं। 1, 2, 8 मध्यम हैं। 3, 5, 7 अधम हैं। अतएव 7वां तारा अधम है। 9. नाड़ी- गृहपति अजित कुमार के उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की नाड़ी-अंत्य है तथा वास्तु के अनुराधा नक्षत्र की नाड़ी-मध्य है इन दोनों नाड़ियों में प्रीति है अत: ये शुभ हैं। 10. राशि- नक्षत्र के क्रमांक में 60 गुणा कर 135 का भाग देने से लब्धफल अंक में एक जोड़ दें। यह राशि की संख्या है। नक्षत्र क्रं. 17 है। आकलित उदाहरण में नक्षत्र का अंक 17 है। 17 x 60 = 1020 गुणनफल । 1020 + 135 = 7 लब्ध आया। इसमें 1 जोड़ें। 7 + 1 = 8 यह राशि का क्रमांक है। अतएव 8वीं वृश्चिक राशि होगी। 11. राशि स्वामी- आकलित उदाहरण में भवन की राशि वृश्चिक है तथा इसका स्वामी मंगल है। गृहस्वामी की राशि धनु है। इसका स्वामी गुरु है। गुरु एवं मंगल में मित्रता है। अत: शुभ है। 12. गृह का नामाक्षर-क्षेत्रफल में 4 का गुणा कर 16 का भाग दें। शेष अंक ध्रुव को प्रारंभ करके गृह का होगा। आकलित उदाहरण में क्षेत्रफल 15625 वर्गांगुल है। इसमें 4 का गुणा करें तथा लब्ध में 16 का भाग देखें। 15625 x 4 = 62500 गुणनफल आया। इसमें 16 का भाग दें। 62500 + 16 - 3906 लब्ध आया तथा शेष 4 रहा। यह गृह का नामाक्षर है। 4 था गृह नंद है। यह नंद वास्तु का नाम है। यह शुभ
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy