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________________ 204 13. अंशक 14. लग्न 15. fafer 16. वार वास्तु चिन्तामणि नक्षत्र की मूल राशि में व्यय अंक तथा नामाक्षर के अंकों को जोड़ें। उसमें 3 का भाग दें। शेष राशि अंशक है। आकलित उदाहरण में नक्षत्र की मूल राशि 19 है। व्यय अंक 1 है। गृह का नामाक्षर 4 है। अतएव 19 +1 + 4 = 24 योगफल में 3 का भाग देवें । 24 38 लब्ध आया तथा शेष 0 रहा। अतः राज अंशक होगा। यह शुभ है। आय अंक + नक्षत्र अंक + व्यय अंक + तारा अंक + अंशक अंक इनके योग में 12 का भाग देने पर शेष अंक लग्न होगा। आकलित उदाहरण में, आय अंक + नक्षत्र अंक + व्यय अंक + तारा अंक + अंशक अंक 1 +17 +1 +1 + 3 = 23 योगफल 23 में 12 का भाग देने पर, 23 + 12 = 1 लब्ध आया तथा शेष 11 रहा। यह शेषांक ही लग्न का अंक है, अतएव 11 वां लग्न कुंभ है। लग्न संख्या में 15 का भाग दें। शेष अंक तिथि है जो नंदा को प्रथम मानकर गिन लें। आकलित उदाहरण में लग्न संख्या 23 है इसमें 15 का भाग देने पर 23 +15 = 1 लब्ध आया तथा शेष 8 रहा। यह तिथि का अंक है अर्थात 8वीं तिथि है। 8वीं तिथि जया है। यह शुभ है। क्षेत्रफल में 11 का गुणा कर 7 भाग दें। शेष अंक चार की संख्या है। रविवार को प्रथम मानकर गिन लें। आकलित उदाहरण में क्षेत्रफल 15625 है। इसमें 11 का गुणा करें,
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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