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________________ 202 वास्तु चिन्तामणि 3. नक्षत्र वास्तु के कुल क्षेत्रफल में 27 का भाग देने पर शेष राशि नक्षत्र की मूल राशि है। मूलराशि को 8 से गुणा कर 27 से भाग दें। शेष अंक नक्षत्र का अंक होगा। पूर्व उदाहरण में क्षेत्रफल 15625 वर्गांगुल है 15625 + 27 = 578 लब्ध आया तथा शेष 19 रहा अत: नक्षत्र की मूल राशि 19 है। 19 x 8 = 152 लब्ध आया। अब इसमें 27 का भाग देखें। 152 + 27 = 5 लब्ध आया तथा शेष 17 रहा। यही नक्षत्र अंक है। 17वां नक्षत्र अनुराधा नक्षत्र है। 4. नक्षत्रगण- अनुराधा नक्षत्र का देवगण है अत: भवन का भी देवगण होगा। यह शुभ है। 5. नक्षत्र दिशा- अनुराधा नक्षत्र पर चन्द्र पश्चिम दिशा में रहता है। अत: अनुराधा नक्षत्र की दिशा भी पश्चिम दिशा होगी। 6. नक्षत्र वैर- अनुराधा नक्षत्र का किसी नक्षत्र से वैर नहीं है। 7. व्यय- नक्षत्र की अंक संख्या में 8 का भाग देने पर जो शेष अंक रहता है। वह व्यय की संख्या है। पूर्व उदाहरण में नक्षत्र का अंक 17 है। इसमें 8 का भाग दें। 17 + 8 = 2 लब्ध आया तथा शेष । रहा। यह व्यय का अंक है। अतएव यह शांता नामक प्रथम व्यय है। 8. तारा- गृहस्वामी के नक्षत्र से गृह तक गिनें। जो अंक आये उसे 9 से भाग देने पर जो शेष आये वह इस वास्तु का तास होगा। वास्तु अजित कुमार की है अत: वे ही उस वास्तु के गृहस्वामी हैं। उनका नक्षत्र उत्तराषाढ़ा है। उत्तराषाढ़ा से अनुराधा नक्षत्र का क्रम 25वां है। नक्षत्र क्रम में 9 का भाग देखें।
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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