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वास्तु चिन्तामणि
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आधुनिक वास्तुशास्त्रियों के अनुसार संलग्न स्नानगृह वाले कक्षों को पूर्व या उत्तर की ओर बनाना चाहिए।
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महत्त्वपूर्ण संकेत
यदि दो कमरों में समानांतर स्नानगृह बनाना हो तो एक दूसरे से लगकर बनाएं।
यदि ईशान में स्नानगृह बनाना हो तो यह ध्यान रहे कि ईशान कोण बन्द न हो जाए।
स्नानगृह के ईशान कोण में कभी भी बायलर नहीं लगाना चाहिए । यदि मकान का मुख पश्चिम की ओर हो तो स्नानगृह पूर्व अथवा वायव्य में बनाना चाहिए।
यदि मकान का मुख दक्षिण की ओर हो तो स्नानगृह वायव्य में बनाना चाहिए। किन्तु मुख्य गृह की तथा परिकर दीवार के बीच की दूरी से कम दूरी रखकर मुख्य गृह से अलग करते हुए बनाना चाहिए।
पूर्व की ओर मुख वाले मकानों में स्नानगृह पूर्वी आग्नेय में बनाना चाहिए।
उत्तर की ओर मुख वाले मकानों में स्नानगृह उत्तरी वायव्य की ओर बनाया जा सकता है।
सभी वास्तुशास्त्रों की मूल धारणा यही है कि स्नानगृह पूर्व में बनवाना सर्वाधिक उपयुक्त है।
स्नानगृह का विभिन्न दिशाओं में बनाने का फल
क्रं. दिशा
1
पूर्व
आग्नेय
दक्षिण
नैऋत्य
पश्चिम
वायव्य
उत्तर
ईशान
2
3
4
5
a
7
8
परिणाम
सर्वकार्य साधक, आर्थिक उन्नति
स्त्री रोग, आरोग्य नाश
रोग, अर्थ संकट
भूत बाधा
पुरुषों को रोग, भ्रम, आपसी गलतफहमी
मध्यम
धन-धान्य, संपत्ति लाभ
आर्थिक संपन्नता