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शोक संवेदना कक्ष Room for condolence
वास्तु चिन्तामणि
पारिवारिक जीवन में यदा कदा ऐसे अवसर आते हैं जब व्यक्ति का मन दुख से व्याकुल हो जाता है। अनेकों विकल्प मन में जन्म लेते हैं। ऐसे समय के अतिरिक्त इष्ट वियोग अनिष्ट संयोग के कारण भी मन दुखी हो जाता है। ऐसे समय सांत्वना की आवश्यकता होती है। ऐसे अवसर के लिए पश्चिम एवं वायव्य दिशा के मध्य एक कक्ष होना चाहिए। ऐसे स्थल पर मन को शांति मिलती है। कई बार अचानक निर्णय लेने की स्थिति में मन में उथल पुथल मच जाती है। समय का अत्यंत अभाव होने की स्थिति में यदि ऐसे स्थल पर मनन किया जाए तो समुचित निर्णयात्मक समाधान मिलने की संभावना रहती है। शनि चंद्र एवं केतु ग्रहों का प्रभाव इस दिशा में होने से मानसिक उथल-पुथल में समाधान मिलता है
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स्नानगृह Bathrooms
गृहस्थों को अपने षट् आवश्यक धार्मिक कृत्यों को करने के अतिरिक्त प्रतिदिन प्रातः स्नान करना भी अत्यंत आवश्यक है। दैनिक व्यापारिक, व्यवहारिक कार्यों में रत रहने, विलासिता आदि में रहने तथा पंचेंद्रियों के विषयों के अधीन रहने के कारण गृहस्थों की शारीरिक शुचिता का अपना पृथक महत्त्व है। शारीरिक अशुचिता से मानसिक अशुचिता में वृद्धि होती है तथा मन धार्मिक कार्यों में प्रवृत्त नहीं होता है। देव पूजा, स्वाध्याय, मुनियों के लिए आहार दान आदि कार्यों में शारीरिक शुचिता अपरिहार्य है। आहार दान एवं देव पूजा के पूर्व में छने हुए शुद्ध प्रासुक जल से स्नान कर शुद्ध धुले हुए वस्त्र पहनना आवश्यक होता है। अतएव यह आवश्यक है कि गृह में स्नानकक्ष उपयुक्त स्थान पर निर्मित किया जाए। वह वास्तुशास्त्र के अनुरूप हो तथा शारिरिक, मानसिक शुचिता में कारण बने । अनुपयुक्त दिशा में मकान बनाना तथा स्नान करना स्नान से मिले फल को निरर्थक कर देता है। अतः स्नानगृह बनाते समय दिशाओं का ध्यान रखना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।
स्नानगृह निर्माण करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त दिशा पूर्व होती है। पूर्व दिशा में स्नानगृह होने से उदीयमान सूर्य की किरणें स्नानकर्ता पर पड़कर उसे ऊर्जा देती हैं। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जल का प्रवाह उत्तर, ईशान अथवा पूर्व की ओर हो। यह उत्तम तथा शुभ है।