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________________ 138 वास्तु चिन्तामणि बीजोरा, केला, अनार, नीबू, आक, इमली, बबूल, बेर, पीले फूल के वृक्ष न तो घर में बोगा पाहिए न इनकी लकड़ी काम में लेना चाहिए। यदि इन वृक्षों की जड़ घर के समीप या घर में प्रविष्ट हो या जिस घर पर इनकी छाया गिरती हो तो उस घर के कुल का क्षय होता जाता है। वृक्ष प्रकरण Surrounding Trees मकान, मन्दिर या वास्तु इत्यादि के निर्माण करते समय शोभा के लिए अथवा उपयोगी होने के कारण वृक्षारोपण किया जाता है। कुछ वृक्ष पूर्व से ही वहां लगे हुए होते हैं। ___ घर के समीप यदि कंटीले वृक्ष हों तो शत्रुभय होता है। दूधवाले वृक्ष से लक्ष्मी नाश तथा फलदार वृक्ष संतान हानि करते हैं। इनकी काष्ठ भी घर बनाने में काम न लेवें। यदि ये वृक्ष घर अथवा घर के निकट हों तो घर ही छोड़ देना श्रेयस्कर है। यह संभव न हो तो दोषनिवारण के लिए नागकेशर, अशोक, अरीठा, बकुल, केशर, पनस, शमी या शालि जैसे सुगंध वाले वृक्ष लगा देना उपयोगी है। इसका विवेचन वाराही संहिता में है आसन्नाः कण्टकिनो रिपुभयदा: क्षीरिणोऽर्थनाशाय। फलिनः प्रजाक्षयकरा दारुण्यपि वर्जयेदेषाम् ।। छिन्द्याद यदि न तरुस्तान तदन्तरे पूजितान् वपेदन्यान्। पुन्नागाशोकारिष्ट बकु लपनसान् शमी शालौ ।। नीम का वृक्ष या वैसा कोई अन्य वृक्ष द्वार के मध्य में हो तो वह असुरप्रिय होने से मनुष्य वहां न रह पायेंगे। ऐसा घर छोड़ देना चाहिए। इसके सन्दर्भ में निम्नलिखित श्लोक विचारणीय हैं अथ निवासा सन्नतरु शुभाशुभ लक्षणानि। गृहस्य पूर्व दिग्भागे न्यग्रोध: सर्व कामिकः।। उदुम्बरस्तथा याम्ये वारुण्यां पिप्पलः शुभः। प्लक्षश्चोत्तरतोधन्यो विपरीतांस्तुवर्जयेत्।।
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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