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________________ 126 वास्तु चिन्तामणि 3. पूर्णबाहु या अपसव्य प्रवेश- मुख्य घर का द्वार प्रवेश करते समय दाहिनी ओर हो अर्थात् प्रथम प्रवेश के समय दाहिनी ओर जाकर मुख्य घर में प्रवेश हो तो उसे पूर्ण बाहु प्रवेश कहते हैं। ऐसे मकान में रहने वाले पुत्र-पौत्र, धन-धान्य तथा सुखों को प्राप्त करते हैं। __4. प्रत्यक्ष या पृष्ठ भंग प्रवेश- यदि मुख्य घर की दीवार घूमकर घर के मुख्य द्वार में प्रवेश होता हो उसे प्रत्यक्ष या पृष्ठ भंग प्रवेश कहते हैं। ऐसे घर के निवासी भी संतान सुख से वंचित, धन-धान्य हीन तथा दरिद्री होते हैं। समरांगण सूत्र में इनके लिए निम्न श्लोक हैं उत्संग एकदिक्काभ्यां द्वाराभ्यां वास्तुवेश्मनोः। स सौभाग्य प्रजावृद्धि धन धान्य जयप्रदः।। यत्र प्रवेशता वास्तुगृहं भवति वामतः। तद्धीनबाहुकं वास्तु निन्दितं वास्तु चिन्तकै।। तस्मिन् वसन्नल्पवित्त: स्वल्पमित्रोऽपबांधवः। स्त्रीजितश्च भवेन्नित्यं विविधव्याधि पीडितः।। वास्तु प्रवेशतो यत् तु गृहं दक्षिणतो भवेत्। प्रदक्षिणप्रवेशात् तद्विद्यात् पूर्ण बाहुकम्।। तत्र पुत्रांश्च पौत्राश्च धनधान्य सुखानि च। प्राप्नुवन्ति नरा नित्यं वसन्तो वास्तुनि ध्रुवम्।। गृहपृष्ठ समाश्रित्य वास्तु द्वारं यदा भवेत्। प्रत्यक्षयस्त्वसौ निन्द्यो वामावर्त प्रवेशवत्।। द्वार निर्माण करते समय यह भी ध्यान देने योग्य है कि द्वार से घर में जाने के लिए सृष्टि मार्ग अर्थात् दक्षिण की ओर से प्रवेश हो, ऐसी ही सीढ़ियां एवं दरवाजे बनाना चाहिए। __ मुख्य द्वार के बराबर अन्य सब द्वार बनाना चाहिए अर्थात् हरेक द्वार के उत्तरंग समसूत्र में रखना चाहिए। या मुख्य द्वार में आ जाए ऐसा संकरा दरवाजा बनाना चाहिए। यदि मुख्य द्वार के एक ओर खिड़की बनाना हो तो उसे इच्छानुसार निर्मित कर लें। वास्तुसार की निम्न गाथाएं इसी आशय का संकेत देती है बारं बारस्स समं अह बार बारमज्झि कायव्वं । अह वज्जिऊण बारं कीरइ बारं तहालं च।।126।।
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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