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________________ वास्तु चिन्तामणि 125 अन्य मतानुसार चौथे, पांचवें या छठवें भाग में द्वार निर्माण करना चाहिए। चतुर्थ भाग में द्वार बनाने से संपत्ति वृद्धि, पांचवें भाग में द्वार होने से सुख प्राप्ति तथा छठवें भाग में द्वार होने से राज प्रतिष्ठा, मान सम्मान की प्राप्ति होती है। कुबेर द्वार विदिशाओं में मुख्य प्रवेश द्वार ईशान दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार होने से ऐश्वर्य लाभ, वंश वृद्धि, सुसंस्कारित संतान तथा शुभफल प्राप्ति होती है। आग्नेय दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार होने से स्त्री रोग, अग्निभय, आत्मघात आदि की संभावना रहती है। नैऋत्य दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार होने से अकाल मरण, आत्मघात, भूतप्रेतबाधा आदि अशुभ घटनाएं होने की संभावना रहती है। वायव्य दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार होने से वास्तु एक हाथ से दूसरे हाथ में अंतरित हो जाती है। आशा से अधिक धन व्यय तथा मानसिक अशांति होती 1. वास्तु प्रवेश वास्तु प्रवेश चार प्रकार का होता हैउत्संग प्रवेश- वास्तु द्वार अर्थात् मुख्य प्रवेश द्वार तथा प्रवेश द्वार एक ही दिशा में हो तो उसे उत्संग प्रवेश कहते हैं। ऐसा द्वार सौभाग्य कारक, संतान वृद्धि, धन-धान्य एवं विजय का देने वाला होता है। हीनबाहु या सव्य प्रवेश- यदि मुख्य प्रवेश द्वार प्रवेश करते समय बायों ओर हो अर्थात् प्रथम प्रवेश के पश्चात बायीं ओर जाकर मुख्य द्वार में प्रवेश हो तो उसे हीनबाहु प्रदेश कहते हैं। यह अशुभ माना जाता है। ऐसे घर में निवास करने वाले अल्प धन वाले, अल्प मित्र वाले, दरिद्री, स्त्री के अधीन रहने वाले तथा अनेकानेक व्याधियों से पीड़ित रहते हैं। 2.
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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