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वास्तु चिन्तामणि
वास्तुशास्त्र : आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
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वास्तुशास्त्र के नियमों का अध्ययन करने पर कभी-कभी यह आभास होता है कि ये नियम काल बाह्य हो गए हैं तथा आधुनिक शैली के भवन निर्माण इनके अनुरूप निर्मित करना संभव नहीं है। जबकि वस्तु स्थिति इसके विपरीत है। वास्तु शास्त्र के नियम आज भी उतने ही कार्यकारी हैं। समय परिवर्तन के साथ-साथ भवन शैलियों में जो परिवर्तन आया है तदनुरूप वास्तु नियमों का विचार करना अत्यन्त आवश्यक है।
प्राचीन काल में स्थान की विपुलता थी तथा जनसंख्या अपेक्षाकृत सीमित थी। ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक जनसंख्या निवास करती थी। नगरों की बसावट काफी कम थी। शिक्षा एवं विज्ञान के प्रचार- प्रसार के उपरान्त जनता का झुकाव शहरों में बसने की ओर होने लगा। रोजगार के अवसरों की बहुलता भी ग्रामीण जनसंख्या के शहरों में पलायन का प्रमुख कारण है। नवीन उद्योगों की स्थापना ने इस प्रवृत्ति को अधिक योगदान दिया है। निश्चय ही इन परिवर्तनों का प्रभाव वास्तु शैलियों पर परिलक्षित हुआ । विदेशी शासकों का भारतवर्ष पर शासन करना भी इस परिवर्तन का प्रमुख कारण रहा। विदेशी शासकों के साथ उनकी जीवन शैली, संस्कृति, धर्म और भाषा ने भी भारत में प्रवेश किया। इसका प्रभाव वर्तमान में स्पष्ट ही परिलक्षित किया जा सकता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य में निर्मित भवनों के लिए वास्तु सिद्धांत समान रूप से कार्यकारी हैं। बालकनी, चबूतरा, गोल सीढ़ियां, लिफ्ट, सैप्टिक टैंक, शौचालय इत्यादि बातों का प्रसंगानुसार उल्लेख करने का प्रयास इस ग्रन्थ में किया गया है। इसके लिए आधुनिक वास्तु शास्त्र के जैन- जैनेतर ग्रंथों का अध्ययन कर उपयोगी सामग्री पाठकों के हितार्थ प्रस्तुत की गई है। वास्तु शास्त्र के मूल सिद्धांतों में किंचित् भी परिवर्तन किए बिना आधुनिक संदर्भ में उपयोगी संकेत दिए गए हैं।
वर्तमान शैलियों में भवन निर्माण सामान्यतः कालोनियों अथवा उपनगरों में किए जाते हैं। इन भवनों की स्थिति उनके धरातल से ढलान, चढ़ाव, आस-पास के वृक्ष आदि के अतिरिक्त उनसे लगने वाली सड़कों से भी