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वास्तु चिन्तामणि
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भित्ति-प्रकरण Chapter of Walls
वास्तु निर्माण की सभी दीवालें आगे की दीवाल की समानता से एक डी सूत्र में निर्माण करना चाहिए। दीवालों का श्रेणी भंग होना तथा गर्भवेध होना स्वामी को अति कष्टकर होता है। कहा है कि
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समान सूत्रे शुभमग्रभित्तिः श्रेणी विभंजेसुतवित्तनाशः । गर्भश्च वेधे न सुख कदाचित् स्वामीविभिन्नेन च दोषकारी ।।
पंच रत्नाकर 172
वास्तु की दीवाले पत्थर की बनाना शुभ नहीं होता। ऐसे भवन दो तीन पीढ़ी के उपरान्त निर्जन हो जाते हैं। परिवारजन अन्यत्र या अन्य नगर को प्रस्थान कर जाते हैं।
वास्तु के प्रवेशद्वार वाली दीवाल ऊबड़-खाबड़ पत्थरों की होगी तो स्वामी कभी सुखी न रहेगा।
दीवाल में दरार पड़ना, फटना, सीधी न होना तथा मुख्य कमान के या द्वार के ऊपर ही दरार आ जाना परिवार पर भयंकर मुसीबत आने की निशानी है। दीवार या ज़मीन में सदैव गीलापन या सीडन रहना परिवार में रोगों को निमन्त्रण देता है।
पश्चिम की दीवाल में दरार आना या टेढ़ी-मेढ़ी होना संपत्ति नाश एवं चोर भय की सूचना देता है।
दक्षिण की दीवाल में दरार या टेढ़ापन आना परिवार में रोगवृद्धि तथा है । मृत्युसम कष्ट का सूचक पूर्व या उत्तर की दीवालों में दरार या टेढ़ापन आना परिवार में अनायास विपत्तियों के आगमन की सूचना है।
दीवालों के कोने समकोण 90 अंश से कम या अधिक के बने होने पर निवासी को भय कारक होते हैं।
यदि निर्माण कार्य को प्रारम्भ करते समय सर्वप्रथम पूर्व दिशा की दीवाल बनवाई जाएगी तो इससे वास्तु निर्माण में अकारण ही विलम्ब होता है। अतएव प्रथमतः दक्षिण की ओर से काम आरम्भ करके दक्षिण की दीवाल बनवाना श्रेयस्कर है।