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वास्तु चिन्तामणि
प्रभावित होती हैं। प्राचीन ग्रंथों में यथासंभव पूर्व या उत्तर में ही सिंह द्वार अथवा कुबेर द्वार निर्माण करने का उल्लेख किया गया है। वर्तमान काल में जनसंख्या वृद्धि तथा शहरीकरण की वृद्धिंगत प्रवृत्ति के कारण भूमि एवं भवनों का मूल्य तो बढ़ा ही है, साथ ही सुलभता भी समाप्त हो गयी है। ऐसी परिस्थिति में उपलब्ध भूखण्ड पर यथासंभव प्रयास किया जाना चाहिए कि वास्तु का निर्माण अधिक से अधिक वास्तु नियमों के अनुकूल हो ।
साधारणत: भूखण्डों के पार्श्व में एक अथवा दो सड़कें होती हैं। किन्हीं भूखण्डों की तीन पावों में भी सड़कें होती हैं। चारों तरफ सड़क वाले भूखण्ड नगण्य अथवा अल्प ही है।
सड़कों के पार्श्व के अनुरूप भूखण्डों का वर्गीकरण किया जा सकता है। जिन भूखण्डों में मात्र एक पार्श्व में सड़क है उनके नाम सड़क वाली दिशा नाम के नाम से कहे जाते हैं। जिन भूखण्डों में दो पावों में सड़क है उनके नाम उन पावों के मध्य की विदिशा के नाम पर कहे जाते हैं। इसको निम्नलिखित रीति से दर्शाया जा सकता है
क्रं.
लक्षण
1
2
3
4
5
6
7
8
भूखण्ड का नाम
पूर्वी
उत्तरी
पश्चिमी
दक्षिणी
ईशान
आग्नेय
नैऋत्य
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वायच्य
जिनके मात्र पूर्व पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र उत्तर पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र पश्चिम पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र दक्षिण पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र पूर्व एवं उत्तर पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र पूर्व एवं दक्षिण पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र पश्चिम एवं दक्षिण पार्श्व में सड़क हो
जिनके मात्र पश्चिम एवं उत्तर पार्श्व में सड़क