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वास्तु चिन्तामणि
8. वायव्य दिशा में परकोटे की दीवाल सबसे ऊंची होने पर आरोग्य एवं
सुख मिलेगा। 9. आग्नेय दिशा में परकोटे की दीवाल सबसे ऊंची होने पर सर्वत्र यश
मिलता है। 10. पूर्व दिशा में परकोटे की दीवाल सबसे ऊंची होने पर ऐश्वर्य हानि तथा
अशुभ होता है। परकोटे की दीवाल का निर्माण कार्य पत्थर व ईंटों से पूरा करें। दीवाल पर प्लास्टर कर अच्छे रग ते पुताई अवश्य कर दें। पत्थर का रंग
स्वभावत: काला होने से अशुभ है, अत: पुताई करना अच्छा है। 12. वास्तु की दीवाल तथा परकोटे की दीवाल में अन्तर रखना आवश्यक
.
13. वास्तु एवं परकोटे की दीवाल को एक समझकर निर्माण करने से
धनहानि होती है। 14. वास्तु एवं परकोटे की दीवाल के मध्य सामान्यत: कम से कम एक
मीटर का अंतर रखना आवश्यक है ताकि वास्तु के चारो तरफ आसानी
से जाया जा सके। 15. वास्तु के चारों तरफ तथा परकोटे के अन्दर से रास्ता होने से परिवार
सुखी- सम्पन्न होता है। घर की बात घर में ही रहती है, बाहर नहीं
जाती। 16, वास्त-सम्बन्धी सर्वरचना परकोटे के अन्दर यथायोग्य स्थान पर दिशाओं
की अनुकूलता के अनुसार करना चाहिए। इससे गृहस्वामी को सर्वत्र
लाभ होता है। 17. परकोटे के अन्दर उत्तर की पूर्व की तरफ अधिक खाली स्थान रखें
जबकि दक्षिण एवं पश्चिम की तरफ कम से कम खाली स्थान रखें। 18. वास्तु के पश्चिम व दक्षिण की ओर खाली जगह अधिक पड़ी हो तो
उसे खाली न रखकर शीघ्र ही उस पर कोई न कोई निर्माण कार्य करा लेना उपयुक्त है।