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________________ 78 वास्तु चिन्तामणि वास्तु का परकोटा Compound wall of vaastu वास्तु के चारों तरफ परकोटा या चार दीवारी का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। इससे वास्तु की सुरक्षा होती है। जिस प्रकार बाड़ खेत की रक्षा करती है, उसी प्रकार परकोटा भी परिवार की तथा धर्म की मर्यादा की रक्षा करता है। जिस प्रकार बाड़ के बिना खेत नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार बगैर परकोटे के परिवार की मर्यादाएं भी नष्ट हो जाती हैं। बगैर परकोटे की वास्तु होने से परिवार को अशुभ परिणामों का सामना करना पड़ता है। परकोटा वास्तु की दुर्जनों के अतिरिक्त हिंसक जानवरों सर्प, बिच्छू तथा भूत-पिशाच आदि से भी रक्षा करता है। ___ वास्तु निर्माण करने के पहले ही वास्तु के चारों तरफ चौकोर परकोटे का निर्माण कर लेना उपयुक्त है। इसमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना अति महत्त्वपूर्ण है1. परकोटे की दीवाल में दो दरवाजे, एक पूर्व तथा एक उत्तर की ओर बनाना चाहिए। इनमें से एक महाद्वार तथा एक लघुद्धार हो। द्वार पर सुन्दर कमान हो तथा सुन्दर रंग से पुता हो। ऐसा महाधर व्यवहारिक कार्यों में सफलता, पारिवारिक समृद्धि तथा सुख समाधान प्रदान करता है। 2. परकोटे में एक ही द्वार परेशानियों का कारण है। 3. यदि परकोटे का द्वार अपने आप बंद होता है तो यह भय उत्पन्न करता 4. परकोटे की दीवाल दक्षिण व पश्चिम में ऊंची हो तथा अधिक मोटी हो तो आरोग्य एवं धन लाभ की.प्राप्ति होती है। 5. परकोटे की उत्तर की दीवाल सबसे ऊंची होने पर धननाश, स्त्री रोग, कर्ज होता है। 6. परकोटे की ईशान की दीवाल सबसे ऊंची होने पर सर्वकार्यों में विघ्न होगा। 7. नैऋत्य दिशा में परकोटे की दीवाल सबसे ऊंची होने पर यश, मान, सम्मान, धन लाभ तथा सुख प्राप्त होता है।
SR No.090532
Book TitleVastu Chintamani
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj
AuthorNarendrakumar Badjatya
PublisherPragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
Publication Year
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Art
File Size5 MB
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