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वास्तु चिन्तामणि
वास्तुसार प्र.गा. 156
धूर्त और मंत्री के घर के समीप, दूसरे की वास्तु निर्मित की हुई भूमि पर तथा चौक में घर नहीं बनवाना चाहिए।
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धुत्तामच्चासन्ने पखत्युदले चउप्पहे न गिहं । गिहदेवलपुव्विल्लं मूलदुवारं न चालिज्जा । ।
विवेक विलास
यदि देवमन्दिर के समीप घर हो तो दुख; चौक में हो तो हानि तथा धूर्त व मंत्री के घर के समीप हो तो पुत्र एवं धन हानि होती है। ऐसा भी कथन है कि
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चैत्य भूमि पर मकान बनवाने से स्वामी को भय उत्पन्न होता है। दामी वाली भूमि पर मकान बनवाने से विपत्तियों में वृद्धि होती है। धूर्त व नीच लोगों के मकानों के समीप मकान बनवाने से पुत्रहानि या मरण होता है।
इनके अतिरिक्त परिकर विचार करते समय निम्न बातों का भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है
1. मस्जिद और चर्च के सामने तथा उसके समीप न मकान बनवाना चाहिए, न जमीन खरीदनी चाहिए।
जमीन के आसपास कोई कब्रिस्तान न हो।
जमीन के एवं घर के सामने कचरे का ढेर न हो। इससे मन में कुविचार, रोग एवं दरिद्रता आती है।
जमीन के ठीक मध्य में गड्ढा, कुंआ या तलघर न हो। अन्यथा आर्थिक हानि बहुत होगी।'
वास्तु के पूर्व या उत्तर की ओर टेकड़ी ( पहाड़ी ) नहीं होना चाहिए। अन्यथा प्रगति में बाधा आती है।
इसके विपरीत दक्षिण एवं पश्चिम में ऊंचा स्थान या टेकड़ी संकट निवारक होने में शुभ मानी जाती है।
पूर्व, उत्तर या ईशान की ओर जलाशय (नदी, नाला, कुंआ, बावड़ी, नहर, तालाब आदि) रहना अत्यंत शुभ है। इससे घर में धन-1 में वृद्धि होती है।
धान्य
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दुखं देवकुलासन्ने गृहे हानिश्चतुष्पथे । धूर्तामात्य गृहाभ्याशे स्यातां सुतधनक्षयो ।।
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गृहस्वामि भयञ्चैत्ये, वल्मीके विपद स्मृताः । धूर्तालय समीपेतु, पुत्रस्य मरणं ध्रुवं । ।