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वास्तु चिन्तामणि
वास्तु परिकर विचार
Surroundings of land जिस स्थान पर वास्तु का निर्माण करना है उसका भी अपना विशेष महत्त्व है। इसका गृहस्वामी पर प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है।
वज्जिज्जइ जिणपिट्ठी रवि ईसरदिट्टि विण्हुवाममुआ। सम्वत्थ असुह चंडी बंभाणं चउदिसिं चयह।।
- वास्तुसार प्र. I गा. 14! वास्तु के सामने जिनदेव की पीठ नहीं होना चाहिए। सूर्य और महादेव की दृष्टि घर के सामने न हो। घर के बायीं ओर विष्णु का मन्दिर न हो। घर के आसपास चंडी मन्दिर न हो तथा ब्रह्मा मन्दिर के आसपास की चारों दिशाओं में घर नहीं बनवाना चाहिए। ये सभी वास्तु के लिए अशुभ होने से त्याज्य हैं।
अरिहंत दिष्ट्दिाहिण हरपुट्टी वामएसु कल्लाणं। विवरीए बहुदुक्रवं परं न मग्गंतरे दोसो।।
- वास्तुसार प्र. 1 गा. 142 वास्तु के सामने अरिहंत देव की दृष्टि हो अथवा घर के दाहिनी ओर जिनालय हो अथवा महादेव की पीठ या बायीं भुजा हो तो यह कल्याणकारक है तथा सुख-संतोष को देने वाला है। इसके विपरीत स्थिति होने पर अत्यंत दुखकारक होता है किन्तु यदि आने जाने का रास्ता बीच में हो तो दोष नहीं होता।
पढमंत जाम वज्जिय धया इ-दु-ति पहर संभवा छाया। दुहहे ऊ णायव्वा तओ पयत्तेण वज्जिज्जा।।
- वास्तुसार प्र. ! गा. 143 प्रथम और अंतिम प्रहर को छोड़कर अर्थात् दूसरे तीसरे पहर (9 से 3 बजे तक) दिन में मन्दिर या ध्वजा की छाया घर पर नहीं पड़ना चाहिए। यदि छाया गिरती है तो यह अत्यंत अशुभ होने से परिवार के लिए दुखकारक होगी। ऐसे स्थान पर मकान का निर्माण नहीं करना चाहिए।