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वास्तु चिन्तामणि
दो कोने वाले मकान से धन नाश होता है। गोमुख मकान से गृहपति को गृह त्याग कर परदेश गमन करना पड़ता है। तीन कोने वाला घर मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट देता है। छह कोनों वाला मकान धर्म नष्ट करता है।
पाहाणमयं थंभं पीढं पटें च' बारउत्ताण। ए ए गेहि विरुद्धा सुहावहा धम्म ठाणेसु।।
- वास्तुसार प्र । गा. 150 यदि पत्थर के स्तम्भ, पीढ़े, छत पर के तख्ते तथा हर शाख सामान्य गृहस्थ के घर में हों तो अशुभ होते हैं। किन्तु धर्मस्थान तथा देवालय आदि में हों तो शुभकारक हैं। वास्तुसार प्रकरण 1 की निम्नलिखित गाथाएं दृष्टव्य हैं
कूणं कूणस्स समं आलय आलं च कीलए कीलं। थंभे थंभं कुज्जा अह वेहं वज्जि कायव्वा।।12711 आलय सिरम्मि कीला थंभो बारुबरि वारु थंभवरे। बार द्विबार समरवण विसमा थंभा महाअसुहा।।1281। थंभ हीणं न कायव्वं पासायं मठ मंदिरम्। कूणकक्रखंतरेऽवस्सं देयं थंभं पंयत्तओ।।129।। गिहमज्झि अंगणे वा तिकोणयं पंचकोणयं जत्थ।
तत्थ वसंतस्स पुणो न हवइ सुहरिद्धि कईयावि।।13 2।। कोने के बराबर कोना, आले के बराबर आला, खूटे के बराबर खूटा तथा खम्भे के बराबर खम्भा ये सब वेध को छोड़कर रखना चाहिए। आले के ऊपर खूटा या कीला, द्वार के ऊपर स्तम्भ, स्तम्भ के ऊपर द्वार, द्वार के ऊपर दो द्वार, समान खण्ड, और विषम स्तम्भ ये सब बड़े अशुभ फलदायक होते हैं। देवालय, राजभवन, राजप्रासाद बिना स्तम्भ के नहीं बनाना चाहिए। किन्तु खण्ड में अन्तरपट तथा मंची अवश्य बनानी चाहिए। पीढ़े सम संख्या में रखना चाहिए। कोने के बगल में अवश्य ही स्तम्भ रखना चाहिए। खूटी, आला, खिडकी इनमें से कोई खण्ड के मध्य भाग में आ जाए, इस प्रकार नहीं बनाना चाहिए। जिस घर के मध्य भाग में या आंगन में त्रिकोण या पंचकोण भूमि हो उस घर में रहने वाले को कभी भी सुख समृद्धि की प्राप्ति नहीं होगी।
वलयाकारं कूणेहि संकुलं अहव एग दु ति कूणं। दाहिण वामइ दीहं न वासियवेरिसं मेहं।।
___- वास्तुसार प्र. ! गा. 135