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वास्तु चिन्तामणि
उच्छ्रायभूमि द्विगुणां त्यक्त्वा चैत्ये चतुर्गुणाम्। वेधादि दोषो नैवं स्याद् एवं त्वष्टेमतं यथा।।
- आचार दिनकर घर की ऊंचाई से दुगुनी और मंदिर की ऊंचाई से चार गुनी भूमि को छोड़कर कोई वेध आदि दोष हों तो दोष नहीं गिना जाता।
रथ्यांविद्धं द्वारं नाशाय कुमारदोपदं तरुणा। पंकद्वारे शोको व्ययोऽम्बुनि: स्त्राविणि प्रोक्तः।। कूपेनापस्मारो भवति विनाशश्च देवताविद्धे। स्तंभेन स्त्रीदोषाः कुलनाशो ब्रह्मणाभिमुखे।।
- नाही संहिता दूसरे के घर का रास्ता अपने घर के मुख्य द्वार से जाता है तो रास्ते का द्वार वेध होने से विनाश कारक होता है। मुख्य द्वार के सामने वृक्ष का वेध होने पर बालकों के लिए हानिकारक है। मुख्य द्वार के सामने कीचड़ का वेध होने पर परिवार के लिए शोककारक है। मुख्य द्वार के सामने जल निकास नाली का वेध होने पर धन का विनाश होता है। मुख्य द्वार के सामने महादेव या सूर्य मंदिर होने पर गृहस्वामी का विनाश होता है। मुख्य द्वार के सामने स्तम्भ का वेध होने पर स्त्रियों के लिए नाशकरक है। मुख्य द्वार के सामने कुंए का वेध होने पर अपस्मार रोग (वायु विकार) होता है। मुख्य द्वार के सामने ब्रह्मा का द्वार हो तो कुल का नाश होता है।
अन्य महत्वपूर्ण संकेत वापी मण्डप गेहानां तृतीय स्तम्भ वर्जनम्।
शिल्पिनो नरकं यान्ति, स्वामी सर्वधन क्षयम्।। वापी, मंडप, घरों में तीन खम्भे नहीं लगाना चाहिए। घर में सम संख्या में खम्भे लगाना चाहिए। विषम संख्या में खम्भे लगाने का फल यह है कि शिल्पी नरक जाता है तथा स्वामी दुरवी होता है। उसका सारा धन नष्ट हो जाता है।
द्विकोण गोमुखाश्चैव धननाश: पतिव्रजः। त्रिकोणं मृत्युदं ज्ञेयं षड्शं धर्म नाशकम्।।