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तृतीयः स्तबक:
वर्धमानं महाबीरं वीरं सन्मतिदायकम् । स्याद्वादन्यायवक्तारमतिवीरं नमाम्यहम् ॥ १ ॥
नमामि तं वीरमहं यदीयमजय्यशक्ति प्रविलोक्य भीतः । यः संगमस्त्रासयितुं यमागाद् अनूष सच्छिष्यनिभः स तस्य ॥ २ ॥
श्रम द्वादशटरधिकसप्त दिवसोपेता नवमासा यदा व्यतीयुस्तदा चैत्रशुक्लायां त्रयोदश्यां तिथावर्यमायोगे श्रीसिद्धार्थम्पतिबल्लभा त्रिशला जगद्वस्तमं प्राचोवार्क सर्वांङ्गरम्यं मनोजकाररूपं माहगुणमरिण द्वीपं बाबूषभनाराचसंहननोपेतं समचतुरस्त्रसंस्थानसमलंकृतं चादम्यशक्तिमेकमप्रतिमम मंकररनं प्रसूत । विशि दिशि विसरद्भिः पुत्रतेजोबिलासस्तवा तमःस्तोमोsस्तंगतः क्वान्तहितो न जाने । वैद्युतप्रकाश इव सर्वत्र
सन्मतिदायक ऐसे वर्धमान महावीर वीर प्रभु को जो स्याद्वादन्याय के उपदेशक होने के कारण प्रतिवीर कहलाये मैं नमस्कार करता हूं ॥ १ ॥
मैं उस वीर प्रभु की शत शत बार वंदना करता हूं जिनकी शक्ति को अजेय मानकर भयभीत करने के लिए आया हुआ संगमदेव स्वयं भयभीत होगया और उनका विनीत शिष्य जैसा हो गया ।। २ ।।
जब गर्भ के नौ माह सात दिन और बारह घण्टे समाप्त हो गये--- पूर्ण हो गये तब चैत्र सुदी १३ की तिथि को सूर्य के योग में उस सिद्धार्थ नृपति की वल्लभा त्रिशला ने पूर्व दिशा जैसे सूर्य को जन्म देती है वैसे हो सर्वाङ्ग सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । पुत्र का रूप कामदेवके समान सुहावना था । उत्कृष्ट गुणरूपमणियों का वह द्वीप के जंसा था- खजाना था । वष्यवृषभनाराचसंहननवाला था । समचतुरस्रसंस्थान से वह शोभित या । उसके जैसा और कोई शरीर न होने से वह अप्रतिम था 1 उसके शरीर से निर्गत तेज के प्रभाव से जो कि प्रत्येक दिशा में व्याप्त हो रहा था पता नहीं पड़ा कि अंधकार का समूह कहां अन्तहित हो गया। बिजली