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वर्षमानचम्पू:
च तज्जन्मजायमानमहोत्सवतः सफल स्वजन्मावां विधास्यावः प्रतीक्षामिमां क्रियमाणो तो दम्पती स्य समयमनयताम् ।
- एतेषु सर्वेषु मांगलिकक्षणेषु निलिम्पमिलित्वा सिद्धार्थरामभवने महानुत्सवोऽकारि। तदिवसमारभ्यैव षट्पंचाशत्कुमारिका देव्यस्त्रिशालामाः शुभषा ाि निलका माताः । प्राभिः सर्वाभिर्यथामियोग गर्भावस्थायां तस्याः सुष्ठ्तया परिचर्या विहिताऽहमहमिकया। चिरकालेन नियुक्ता परिचिता प्रियंवदा त्रिशलाचेटी तत्सुखसुविधाविधौ स्वीयं पूर्णयोगं सावधाना सत्यवात् । अतः स्वस्वामिन्याः प्रभुमातुः किञ्चिपि शारीरिक मामसिकं च कृच्छनाऽभूत । तथा विविधर्मनोरंजकैरुपायैः सा तस्याः समाराधनतत्परा बभूव । अतस्तस्यै कश्चिदपि खेवलेशो नाजायत ।
उसके जन्मसमय के होनेवाले महोत्सव से हम लोग अपने जन्म को सफल मानेंगे ?
इन समस्त मांगलिक क्षणों में देवों ने मिलकर सिद्धार्थ राजा के राजभवन में बहुत बड़ा उत्सव किया । उस दिन से ही देवी त्रिशला की शुश्रूषा करने में छप्पन कुमारी देवियां नियुक्त हो गई । इन सब ने अपने अपने नियोग के अनुसार गर्भावस्था में उस त्रिशला माता की बहुत अच्छी तरह परिचर्या की। त्रिशला की एक चेटी थी जो बहुत पुरानी थी । उसका नाम प्रियंवदा था। यह त्रिशला की सुख-सुविधा का बहुत अधिक ध्यान रखती थी । इसकी वजह से प्रभु की माता को शारीरिक एवं मानसिक जरा सा भी कष्ट नहीं हो पाता था । यह विविध प्रकार के मनोरंजक साधनों से अपनी स्वामिनी की सेवा करने में सर्वदा कटिबद्ध रहा करती थी। अतः माता को किचित् मात्र खेद नहीं हो पाता था।