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वधमानचम्पू:
निशम्य तान् निखलान् नुपेण सिद्धार्थेन निमित्तशास्त्रविशारदेन मुक्ताफलसमश्चतिरदेन पूर्व तत्फलं चेतसि विनिश्चित्य प्रसम्मममसा पश्चादित्थमभिहितम्
देवि ! त्वमांस परमसौभाग्यशालिनी यत् सांभाग्यसौन्दर्यमालिनो बलिष्ठस्य सातिशयज्ञानसमन्वितस्य तेजस्विनामप्य ग्रसरस्य महागुमिनो यशस्विनो जगवृद्धारकस्य तवभवसकलकर्ममलफलक विनाशरूपमूक्तिकान्ता-कान्तस्य सुतस्य जननी भविष्यसि । प्रघुना स त्वदीयोवरेऽवतीर्णः । एतदुबन्तस्य संसूचकाः स्वप्ना देवि ! स्वयेमे. दृष्टाः । यतो हि-"अस्वप्नपूर्व हि जीवानां नहि जातु शुभाशुभम्" इति । अस्मद्भवनमिधमचिरेण परमसौभाग्यशालिनास्मनापवायुष्केण जीवेन समलंकृतं भविष्यति । इत्थं हृद्यानवद्यमवन्तं विचिन्त्य श्रुत्वा च सिद्धार्थस्तस्पत्नीधेति द्वावपि हर्षोत्कर्षस्य परां काष्ठा जग्मतुः । कस्मिन् मंगलमयेहनि तज्जम्म भविष्यति, कदा चावयोः पुत्राननावलोकनसमोहा पूर्णतां प्राप्स्यति, कदा
सिद्धार्थ नरेश निमित्तशास्त्र के विशिष्ट ज्ञाता थे । अतः उन स्वप्नों को सुनकर और उनका फल पहिले अपने आप में निश्चित कर बाद में बड़े आनन्द के साथ मुसकाते हए उन्होंने रानी से कहा- देवि ! तुम बड़ी सौभाग्यशालिनी हो जो अत्यन्त सौभाग्य एवं सौन्दर्य से सर्वोत्कृष्ट, बलिष्ट, तेजस्वी, यशस्वी, संसारोद्धारक एवं सकलकर्ममलकलङ्क के विनाशरूप मुक्ति कान्ता का पति तद्भवमोक्षगामी ऐसे पुत्र की माता होनेबाली हो । इस समय वह तुम्हारे उदर में अवतीर्ण हो चुका है। इसी बत्तान्त की सूचना देने वाले ये सोलह स्वप्न हे देवि ! तुमने देखे हैं। स्वप्न जीवों के शुभ और अशुभ के सूचक होते हैं । हे देवि ! बहुत शीघ्र ही हमारा यह भवन परम सौभाग्यशाली एवं अनपवर्त्य प्रायुबाले जीव से जगमगाने वाला है । इस प्रकार के विचार से वे दोनों दम्पती हर्ष से उत्कर्ष की पराकाष्ठा को प्राप्त हुए, और इस प्रकार की प्रतीक्षा में तन्मय होकर ऐसा विचार करने लगे-किस मंगलमय दिवस में उसका जन्म होगा? कब पुत्र का मुख देखने की हम लोगों की वाञ्छा सफल होगी ? और कब