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वधमानचम्पूः
भाति नियं गन्द मीमालोतराशयः । अथवा तद्गृहस्यायं विद्युद्दीपो महोज्यसः॥६॥
कच्चिदाकाशगंगाया सप्तर्षीणां कराच्युतः । पङ्कजः पतितो मेघपथस्य पथि भास्करः ॥७॥
यद्वायं व्योमरामाया अभिरामोऽस्ति कंदुकः । विशासोमन्तिनीसीमन्तस्य सिन्दूरपिपिडकर ॥॥
प्रजकारागृहे तम्या ये क्षिप्तास्छषिचौर्यतः । राजा मुक्ता मिलिन्दास्ते तं स्तुवन्तीह झंकृतः ॥६॥
अपनी आभा से सूर्य ऐसा प्रतीत होता था मानो वह पूर्व दिशा रूपी नवेली नारी को लाल रंग की अोढने की चूनरी ही है या उसके भवन का वह १००० वाट का बिजली का बल्ब ही है 11 ६ ।।
अथवा-सप्तर्षियों के हाथ से आकाशमार्ग में गिरा हुआ यह कान्तिमान आकाशगंगा का कमल ही है ।। ७ ।।
अथवा -पाकाशरूपी नायिका की खेलने की गेन्द है ? या दिशारूपी सोमन्तिनी की मांग भरने की सिन्दूर की डिबिया है ।। ८ ।।
अपनी कान्ति की चोरी करने के कारण रात्रिरूपी नायिका ने भौंरों को कमलरूपी कारागृह में रातभर बन्द रखा, अब सूर्य के उदय होने पर वे उस कारागृह से मुक्त होकर मानो अपने मुक्तिदाता सूर्य की भनभनाहट के छल से स्तुति करने में तल्लोन हो गये हैं ।। ६ ।।