________________
24
संक्षेपतो जंबूद्वीपस्य वर्णनम् -
श्रयाऽस्ति वृत्तः प्रथितः पृथिव्यां स्वः कीर्तिकारस्यापित
सुराद्रिमध्यो
''?
वर्धमान चम्पूः
दैन्यभारः ।
लवणाविप्रो,
द्वीपः स जम्बूपपदो विशालः ।। १८ ।।
द्वीपान्तर श्रेण्युपरिस्थितोऽसाबुद्यम्ययोना किनगोत्तमाङ्गम् । विमति पश्य दिग्गतांस्तान् द्वीपान् स्वलक्ष्म्यैव विलज्जितांस्तान्
॥१६॥
$
प्ररमच्छ्रिया लज्जित ! बन्धुवृन्द ! मा भूः परासुः पतनेन वाधौ । इत्थं कृते ते न समस्त्यमिख्या, स्थामन्त्र भूचक्र बहिष्कृतोऽहम् ॥२०॥
वोपस्तस्थानिति बोधनाय कृतोऽजलि येन सुराद्रिदभ्भात् । महामयाबेन धूतापगाध्या - जान्मुक्तनेत्राभूदन्ति ॥२१॥
संक्षेपतः जम्बूद्वीप का वर्णन -
इस भूमण्डल पर गोल चूडी के आकार जैसा एक द्वीप है । इसका नाम जम्बूद्वीप है | यह सबसे पहला द्वीप है। इसकी कीर्ति और कान्ति के प्रागे स्वर्ग भी लजाता है। इसके ठीक बीचों-बीच एक पर्वत है जिसका नाम सुमेरु है | जम्बुद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए कोट के जैसा लवण समुद्र है ।। १८ ।।
द्वीपान्तरों के ऊपर रहा हुआ यह जम्बूद्वीप सुमेरुपर्वत रूप अपना मस्तक ऊपर उठाकर - ऊंचा कर अपनी लक्ष्मीं से लज्जित हुए उन भिन्न-भिन्न दिस्थित पर्वतों को ही मानो देख रहा है और उनसे "हे बन्धुवृन्द ! श्राप सब मेरी लक्ष्मी के आगे लज्जित हो जाने के कारण कहीं ऐसा न कर बैठना कि पास के समुद्र में डूबकर अपने प्राणों को गंवा दें । यदि आप लोगों ने ऐसा किया तो मैं हत्यारा माना जाऊंगा और ऐसी स्थिति में मेरा जाति से बहिष्कार हो जायेगा । अतः श्राप लोग यह अशोभनीय कार्य न करें" ऐसी प्रार्थना वह सुमेरुपर्वत के बहाने से ही मानो हाथ जोड़कर एवं अपने में बहती हुई नदियों के छल से उनके समक्ष श्रश्रु बहाकर (उन तटस्थ द्वीपों से ) कर रहा है ।। १६-०२० - २१ ।।
27