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वर्धमानचम्पू:
भ्रष्टान्धधर्मभक्तानां
पापाशनविलोभिनाम् । सदाचारविहीनाना,
मत्याचारविधायिनाम् ॥ १६ ॥
धर्माधर्मविवेकेन,
होनानां धर्मलोपिनाम् । सद्धर्मशिक्षकः कश्चिन, ___ महात्मा जायते ध्रुवम् ॥ १७ ॥
पासीत्तस्मिन् काले जनधनाकीर्णा विशला विशालशालान्विता वैशालीनामधेया नगर्यका। नगरीयं जम्बूद्वीपस्थित-भरतक्षेत्रार्यखंबान्तर्गसविदेहप्रान्तस्थमुजफ्फरपुरमण्डलाधीमयसाढनिगमनिकटस्था।
जो धर्म-भ्रष्ट हैं, धर्मान्ध हैं, मांस भक्षण करने में लुब्ध हैं, सदाचारविहीन हैं, अत्याचार करने में निपुणमति हैं, धर्म-अधर्म के विवेक से रहित हैं एवं धर्मविध्वंसक हैं ऐसे आततायियों को सद्धर्म की शिक्षा देनेवाला कोई न कोई महात्मा इस संसार में समयानुसार जन्म धारण करता ही है ।। १६-१७ ॥
उस काल में जनधन से परिपूर्ण एक विशाल वैशाली नाम की नगरी थी। इसके चारों ओर कोट था। यह नगरी जम्बूद्वीपस्थित भरत क्षेत्र के प्रार्यखण्ड के अन्तर्गत विदेह (बिहार) प्रान्त में वर्तमान जिला मुजफ्फरपुर के वसाढ ग्राम के निकट थी ।