________________
वर्धमानवम्पूः सम्पन्नाश्च भूत्वा भ्रकुशायण्ते । धार्मिका अपि दाम्भिका इव स्वीयां धर्ममयों प्रवृत्तिमुज्झित्वा बदराकारवबहिरेव मनोहराः प्रतीयन्ते, नाम्यन्तरे । दीनानां सहायकवजितानां सस्थामा बम विसहितानां भूकानां च परवादीनां फहणध्वनि न कोऽपि तदा संशृणोति । आचारविचारव्यवस्थेत्थमस्तव्यस्ता निरर्गला च संजायते । तवा निष्कम्पापि प्रकृतिः स्थास्मनि सकम्पा भवति । प्रवहति तस्याः कवणस्रोतो जगवाचार विचारविलोपापनोवाय । तत्प्रभावाद्विशिष्टधर्मप्रभावावा यथा वियति वारिवाः प्रभवन्ति तथैव अगत्यपि कश्चिदीदक प्रभावशाली सासनिधिता । वीरावतंसो वीराग्रणीः प्रभवति, योऽत्याचारानाचारनाथरता दुर्दान्तहिपानामिव जनानां स्वेच्छाचारं निरस्यति । संकटग्रस्तानां दुर्दशा. गर्तपततरं च सत्वानां संकट दुर्दशाव्यवस्थां च दूरी करोति प्रदर्शयति च सर्वेभ्यः सत्पथम् ।
हैं एवं बाहर में वे नटों के जैसे होकरदयालू होने का ढोंग रचते रहते हैं। इसी तरह जो धामिकजन माने जाते हैं वे भी अपनी धार्मिक वृत्ति को छोड़कर बैर के प्राकार जैसे होकर जनता के समक्ष आते रहते हैं-ऊपर से ही वे चिकने चुपड़े प्रतीत होते हैं; ग्राभ्यन्तर उनका धार्मिक प्रवृत्ति से बिलकुल शून्य बना रहता है। उस समय दोन, सहायविहीन, कमजोर मूक पश्वा दिप्राणियों की करुण पुकार कोई नहीं सुनता है । प्राचार विचार व्यवस्था इस प्रकार जब अस्त-व्यस्त एवं निरंकुश हो जाती है, तब निष्कप भी प्रकृति अपने आप में सकंप होकर उस अव्यवस्थित एवं निरर्गल जगत् के प्राचार-विचार को नष्ट करने के लिए अपना करुण प्रवाह वहाती है । इसके प्रभाव से आकाश में जैसे बादल हो जाते हैं उसी प्रकार से जगत् में भी कोई एक ऐसा प्रभावशाली साहस निधि नेता, जो कि वीरशिरोमणि होता है, जन्म लेता है जो अत्याचार एवं अनाचार करनेवाले दुन्ति हाथी के समान अत्याचारी जनों के अत्याचारों एवं अनाचारों को दूर कर देता है, तथा संकटग्रस्त एवं दुर्दशारूप गर्त में पतित प्राणियों के संकटों को एवं दुर्दशारूप विशिष्ट अवस्था को दूर करता है और उनके लिए सत्पथ पर चलने का सुन्दर मार्ग प्रदर्शित करता है।