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वर्धमानचम्पू: ज्वालामाला सुगन्धितन्यैः सत्रा तीर्थकरस्य तत्परमौवारिकमपधनं भस्मसान्निनाय । सस्तोपस्थिसः सावरुद्भतं सरम परमनपस्या स्वोसमाङ संमलितम् । तनिर्वाणदिवस एव श्री गौतमेन लोकालोकाषभासकं कैवल्यमलामि । तदारभ्यवाखिले भारते तीर्थकरस्य महावीरस्य संसती प्रतिवर्ष कातिककृष्णामावास्यां तिथौ तत्स्मारकरूपो दीपावलीति नाम्ना महापर्वराजः परितः प्रचलितो जातः । वियसोऽयं अनरतिशुमः परिगण्यते च मन्यते । प्रस्मिन दिवसे तस्यार्चा परिनिर्वाणसपर्या केवलज्ञानस्वरूपाया लक्ष्म्याश्चापि पूजा तथा क्षणदो समये प्रवीपाश्च प्रज्याल्य हर्षोत्कर्षसूचको विशेषप्रकाशश्च क्रियते।।
घोरे सर्वसुखाकरे भगवति प्रध्यस्तकर्मोदये, मुक्तिश्रीनिलयाधिपे सति सुरैरिन्द्रस्तथा मानः । भूयश्चापि जयप्रघोषफलितैरागत्य पावापुरी, तत्रासंख्य सुवीप्रदीपकगः प्रज्वालितो भक्तितः ।। ५२ ॥
निकलती हुई अग्नि ने मुगन्धित द्रव्यों के साथ-साथ तीर्थंकर प्रभु के उस परमौदारिक शरीर को भस्मसात् कर दिया । वहां पर जितने भी प्राणी उपस्थित थे उन सबने उस भस्म को परमभक्तिपूर्वक अपने-अपने मस्तक पर लगाया। जिस दिन प्रभु को निर्वाण की प्राप्ति हुई उसी दिन गौतम गणधर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ । इसी दिन से समस्त भारत में तीर्थकर महावीर की स्मृति में प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन उनकी याद दिलानेवाली 'दीपावली' इस नाम से प्रसिद्ध महापर्वराज प्रचलित हुआ है । मनुष्य इस पर्व को बहुत पवित्र मानते है । इस दिन इसकी पूजा, परिनिर्वाण पूजा, एवं केवलज्ञानरूप लक्ष्मी की पूजा करते हैं और रात्रि में प्रदीप-पंक्ति प्रज्वलित कर हर्षोत्कर्षसूचक प्रकाश करते हैं।
वीर प्रभु सर्वजीवों के हितैषी हैं। भगवान् स्वरूप है। उन्होंने कर्मोदय को ध्वस्त कर दिया है । इस कारण वे मुक्ति-श्री के सौध के अधिपति बन चके हैं। इस खशी में इन्द्रों ने, देवों ने, मानवों ने और राजामों ने जय-जयकार करते हुए पावापुरी में प्रवेश किया और भक्तिभाव से वहां असंख्यात प्रदीपों को जलाकर विशिष्ट प्रकाश किया ।। ५२ ॥
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