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मधमानचम्पूः सह पाबानगरमियाव । तत्रासंख्यातान् प्रदीपान् प्रज्वाल्य स महान्तं रवितेजोऽधिकं प्रकाशं चकार । प्रागन्तुकः सुरवृन्दरपि तीर्थकरस्य प्रमोरमत्तः संभूयोच्चमधुरः स्वरर्जयधोषोऽकारि पुनः पुनः । अतः पाषानगरस्था जना निकटस्थाः स्त्रीपुरुषाश्चापि तीर्थंकरनिर्वाणगमनसूचनामलभन्त । अतः सर्वेऽपि से प्रदीपान प्रज्वाल्य तस्मिननधिष्ठाने समागताः। इत्थं तत्रासंख्याताः प्रयोपाः स्वस्थप्रभया प्रकाशाधिक्यं प्रतेनिरे । भक्तिभरावनद्धान्तःकरणधिस्तथा निलिम्पंश्च तीर्थकरपरिनिर्वाणस्य महोत्साहेन प्रबलप्रमोदेन च महानुत्सवो व्यधायि । हस्तिपालनपेण, मल्लिगणनायकैस्तथाऽष्टादशगणनायक चापि मध्यमापावायां परिनिर्वाणसमारोहोऽत्यधिकोसाहेन भक्तिपूर्वकमकारि । बीरे मुक्तिगते सति देयास्तदीयं पाथियं विग्रहं कपरचंदविरचिताया चितायां संस्थापयामासुः । नमस्कारं कुर्वतां वह्निकुमारवेवानां मौलिभिस्तत्क्षणनिर्गतज्यलन
आकर उसने प्रसंख्यात दीपों को जलाकर नगर को प्रकाशमय कर दिया । साथ में प्राये हुए देवों ने भी प्रमोदमत्त होकर उच्च स्वरों से बारम्बार जयघोष किया। अतः पावानगर के समस्त नर-नारी-जन और पास-पास के नर-नारी-गण तीर्थंकर के निर्वाणगमन की सूचना पाकर वहाँ पाकर उपस्थित हो गये। उन्होंने भी वहां दीपक जलाये, इस तरह वहां असंख्यात दीपों की राशि का प्रकाश चारों ओर फैल गया । भक्तिभाव से जिनका अन्तःकरण प्रोत-प्रोत हो रहा है ऐसे मनुष्यों ने तथा देवों ने तीर्थंकर के परिनिर्वाण का बड़े उत्साह एवं प्रमोद के साथ बहुत बड़ा उत्सव किया । हस्तिपाल नरेश ने, १८ मल्लिगणनायकों ने एवं १८ गणनायकों ने मध्यमापावा में परिनिर्वाण समारोह बड़े ठाट-बाट के साथ भक्तिपूर्वक किया। वीर प्रभ के मोक्ष चले जाने पर देवों ने उनके पार्थिव शरीर को कपूर चन्दन पादि सुगन्धित पदार्थों से रची गई चिता में स्थापित किया। इसके बाद नमस्कार करते हुए अग्निकुमार जाति के देवों के मणिनिर्मित मुकुटों से
१. पावापुरस्य बहिसन्नतभूमिदेणे पद्मोत्पलकुलवतां सरसां हि मध्ये 1 श्री वर्धमान जिनदेव इति प्रतीतो निर्वाणमाप भगवान् प्रविधूतपाप्मा ।
निर्वाण भ० २५