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वधेमानधम्पू:
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परिनिर्वाणप्राप्तिः
मन्ते सोऽयं प्रभुविहारं निरुद्धय पावानगरेऽनेकेषां सरोवराणां मध्ये महोन्नतभूमिप्रदेशे महामणिमयशिलातले संस्थितः । तत्र तेन षडदिवसान यावत् योगनिरोधं विधायान्तिम गुणस्थानं सम्रपलाधम् । तत्रावशिष्टान्यघातिकाणि चोन्मूल्य कालिककृष्णामावास्यादिवसे ब्राह्म मुहूर्ते (सूर्योदयात्किञ्चित्प्राक्समये) संसारपरिभ्रमणान्मुक्तिसम्धा ।
परिनिर्वाणमहोत्सवः यदा श्री तीर्थकरो महावीरः पावापुरीतो निर्वाणमाप तदा स तस्या निशीथिन्या अन्तिमोऽन्धकार आसीत् । यर्थवेन्नो विविधरिचलं. स्तीर्थंकरमहावीरस्य निर्वाणलामसूचनामलमत तर्थवासी देवपरिवारैः
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परिनिर्वाणप्राप्ति
अन्त में वे विहार को संवरण कर पावानगर में अनेक सरोवरों के मध्य महोन्नत- भूमि-प्रदेश में संस्थित महामणिनिर्मित सिंहासन पर विराजमान हुए । बहां ६ दिन तक उन्होंने योगों का निरोध किया और वे अन्तिम गुणस्थान पर प्रारूढ़ हो गये । वहां अवशिष्ट अधातिया कर्मों को नष्ट कर कार्तिक कृष्णा अमावस्या को ब्राह्ममुहूर्त में संसार-परिभ्रमण से .. मुक्त हो गये।
परिनिर्वाणमहोत्सव
जब तीर्थकर महावीर ने पावापुरी से निर्वाण प्राप्त किया था। उस रात्रि का वह अन्धकार उनके जीवन का अन्तिम अन्धकार था। जैसे ही विविध निर्वाणसूचक चिह्नों से इन्द्र ने भगवान् महावीर के निर्वाणप्राप्ति की सूचना पायी वैसे ही वह देवपरिवार के साथ पावापुरी आया । वहां