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वर्धमानचम्पूः
163 क्षपकश्रेण्या यानि गुणस्थानानि सन्ति तेषां समयोऽन्तर्मुहर्तप्रमाणः । अस्मिन् काले योगी सर्वज्ञो जायते । बीतसर्वज्ञ पदावाप्तिरेवात्मनो जीवन्मुक्तावस्था। सैव परमात्मा (महन) एवंविधन शन्देनाख्यायते । एतत्पूर्णोन्नतिरूपस्याथवा तत्पूर्णशुद्धिस्वरूपस्यात्मन इयवृहत्कार्यसमुत्पत्तावियान् लधीयान् समयो लगति, तथापि तवय स!स्कृष्ट कार्य मिदं संपादितं भवति यदाऽऽत्मा तपश्चरणेन शुक्लध्यानाविवियोग्य सामग्र्या संकलितो जायते।
शुक्लध्यानस्य सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति नामकस्तृतीयः पादोऽस्मिन् प्रयोदशे गुणव्याने समाविर्भूतो भवति ।
मालमोन्नतेरस पौराग सतनालीगन्मुक्तपरमात्मपदलाभस्वरूपाया अयं पंथास्तीर्थकर महावीरेणापि समुपात्तः । तरपवप्राप्तिप्रक्रियामन्तरेण तस्याभावात् । पंचदशदिवसाधिकपंचमासोपेतानि
क्षपक श्रेणी के जो गुणस्थान हैं उनका समय एक अन्तर्मुहूर्त का है, इस समय में ही योगी सर्वज्ञ हो जाता है । वीतराग एवं सर्वझपद की प्राप्ति ही आत्मा की जीवन्मुक्त अवस्था है । यह अवस्था ही परमात्मा अर्हन्त इन शब्दों से अभिहित होती है । यद्यपि इस पूर्ण उन्नतिरूप अथवा अपनी पूर्ण शुद्धिस्वरूप प्रात्मा के इतने बड़े कार्य की उत्पत्ति में इतना सबसे अल्प-कम-समय लगता है फिर भी सर्वोत्कृष्ट यह कार्य उसी समय सम्पादित होता है जब प्रात्मा तपश्चरण के द्वारा शुक्लघ्यान को प्रकट करने योग्य सामग्री से युक्त हो जाता है ।
इस १३वें गुणस्थान में सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति नाम का तीसरे शुक्लध्यान का भेद प्रकट होता है।
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वीतराग सर्वज्ञ अहंत जीवन्मुक्त एवं परमात्मपद के लाभ होने रूप आत्मोन्नति या आत्मशुद्धि का यह मार्ग तीर्थकर श्री महावीर ने भी प्राप्त किया क्योंकि इस पद को प्राप्त करने की जो प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया के बिना उस पद की प्राप्ति नहीं होती है । महावीर ने १२ वर्ष ५ माह और
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