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वर्धमानचम्पू:
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सवायमम्ब ! तनूजोऽपूर्वादम्यबलेन समाढ्यः धीराणां च धोरेयो बनवृषभनाराचसंहननसहितोऽतो नास्थ कापि क्यापि च चिन्ता चेससि त्वया विधेया । शोतातपबाधया नायं प्रधाधितो भविष्यति । न चायं भयंकरेभ्योऽपि परीषहेम्यश्चोपसर्गेभ्यः पतितेभ्यस्तत्रभवानचलितयों भेष्यति । यस्मावधिकं महोन्नतं या पदं किमप्यन्यन्नास्ति तत्पदं सर्वश्रेष्ठ लधुमयं गृहानिर्गतोऽतस्त्रिलोकपूजितचरणारबिन्दसताम्ब ! चिन्ताक्लान्तं स्थान्तं मा कुरु । नायं केवलं त्यवीयः सुतएकाक्येद संसारसागरमुत्तीर्य मुक्ति प्रयास्यति किन्त्वसंस्थानप्यसुमतो मुक्तिलामाश्रितान् विधास्यति । जननि ! मोहावरणं विघटय ।
हे माता! तुम्हारा यह सपूत अदम्य अपूर्व बल से परिपूर्ण है । धीरवीरों में यह अग्रगण्य है । वजवृषभनाराच संहनन का धारी है अतः तुम्हें इसकी किसी भी प्रकार की चिन्ता नहीं करनी चाहिये । शीत एवं प्राताप की बाधा इसका कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकती है । यह कितनी भी भयंकर से भयंकर परीषह और उपसर्ग के प्राजाने पर भपने पद से रंचमात्र भी चलित नहीं होगा । यह जो गृह का परित्याग कर तपोवन में प्रविष्ट हो रहा है उसका कारण यह है कि यह उस पद को प्राप्त करना चाहता है जिससे कोई और पद श्रेष्ठ नहीं है । इसलिए हे त्रिलोक-पूजित चरणकमलवाले सूत की माँ ! तुम अपने मानस को चिन्ता से क्लान्त मत करो । हे माँ! तुम ऐसा मत समझो कि यह आपका बेटा ही केवल मुक्तिपथ का राही बनकर संसार-समुद्र से अपने आपको पार उतारेगा
और मुक्तिपद को प्राप्त करेगा किन्तु और भी जो असंख्य जीव ससार में निमग्न हैं उन्हें भी यह मुक्तिपथ का पथिक बनाकर मुक्ति प्राप्ति के लाभ से अन्वित करेगा। हे जननी ! मोह के प्रावरण को दूर करो।