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मधमानधापू
संसारिण इमै सवें मोहान्धतमसि स्थिताः । मानप्रकाशवानाय तेभ्यो दीक्षा समुह १४ ॥
भवता सांसारिकमोहममतायाः परित्यागविषयको विमों स्वचेतस्याचरितो, यश्च सफलसंयमाराधनस्य विनिश्चयो विहितः, सोऽधुना व्यक्षेत्रकालभावानुरूपः समीचीनो मार्ग एषः। एतस्मादेष मुक्ति सौधाधिपतित्वप्रयायको भवतो मनोरयः सेत्स्यति । एकान्ततः श्रेयस्तरोऽयं विमर्शो विनिश्चयश्चेति । श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिरस्येव प्रसादाने नूनं भविष्यति निष्प्रत्यूहा । भविष्यति च तपसा त्यागेन संयमेन पामराबरपरप्राप्तिस्तेऽचिरेण । विधास्थति भवान विश्वस्य कल्याणं नाता ब्रष्टा
भगवन् ! ये संसारी जीव मोहरूपी अन्धकार में डूबे हुए हैं । अतः आप इन्हें ज्ञानरूपी प्रकाश देने के लिए दीक्षा धारण करें ।। १४ ॥
आपने जो सांसारिक मोह-ममता के परित्याग का विचार किया तथा सकल संयम की आराधना करने का निश्चय किया है सो यह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुरूप बहुत ही अच्छा अवसर है । इसी से प्रापका मनोरथ जो कि आपको मुक्ति में ले जाने के लिए रथ के समान है, सिद्ध होगा। आपका यह विचार और निश्चय एकान्ततः सर्वोसम है। श्रेयोमार्ग की संसिदि पापको इसी के प्रसाद से हो सकेगी । तप, त्याग एवं संयम से ही प्रापको अजर अमर पद का लाभ बहुत ही शीघ्र होने वाला है । आपके द्वारा विश्व का कल्याण भी ज्ञाता द्रष्टा होने पर ही होगा ।