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वर्धमानचम्मूः जगजीवानामोशी यौवने सम्प्राप्ते सति वैषयिकवासना प्रबलयेगादुःस्थितिभवति । तथापि यूनोऽसाधारणपुंसो वर्धमानस्य चेतस्यास्या अदम्यायाः कामवासनायाः प्रभावोंऽशतोऽपि नाजायत, कारणं चामेवाह मन्ये
साझा बन्धुकुटुसङ्गिनिकरा नो शक्तिमन्तोऽभवन्,
ध्येयाच्चालयितुं स्थिरावपि जवात् स्यान्तं यदीयम् । वीरस्यास्य विचालने, कथमहं शक्तो भवेयं हहा:--
नङ्गत्वादिति वीक्ष्य तं विजयिनं स कामिस्थितः ॥ ६ ॥
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जीवों की यौवन अबस्था के आने पर वैषयिक बासना के प्रबल आवेग से दुःस्थिति होती रहती हैं फिर भी जवानी में आये हुए असाधारण पुरुष वर्धमान कुमार के चित्त में इस अदम्य काम वासना का जो प्रभाव अंशतः भी नहीं हुआ मैं इसका यह कारण मानता हूं
कामदेव ने ऐसा विचार किया होगा कि जब साक्षात् शरीरधारी बन्धुजन, माता-पिता प्रादि समस्त पारिवारिक जन भी जिसे अपने निश्चित ध्येय से विचलित नहीं कर सके तो मैं तो अनङ्ग हूं-बिना शरीर का हूं तब मेरी क्या हस्ती है जो विजयी वर्धमान कुमार को अपनी मोर बैंच सकूँ । ऐसा विचार कर ही मानो वह वहां न जाकर अन्य प्राणियों में कामोजनों में स्थित हो गया ।। ६ ॥