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वर्धमानचम्पू:
निपातयन्ति । काम कुर्वन्तु साधारणजीवा मदनावेशनिरोधनेऽशत्ताः सन्तः सदाचारविवजिता निषिद्धमपि कृत्यं विधाय स्वासूत्यजीवनमपि विगर्हितमज्ञानाच्छादितमतित्वानात्र चित्रं भवन्तु वाले भ्रष्टा इतस्ततः । परन्तु पश्यन्तु स्वप्रबल पराक्रमेणादम्योत्साहेन च योऽजय्यशक्तिशालिन कान्तारैकान्तविहारिणं केशरिणं मदोद्धतं व भौतिकरं द्विरदं विजित्य स्ववशमानयन्ति बलिष्ठानामपि सुभटानां संभ्यं यः पराजित्य विजयश्रियं वृणोति सोऽपि कामराजस्थ प्रकृष्यमाणरागेण निजितस्तं विजेतुं सर्वथाशक्तो जायते । विहितमपि कृत्यं कर्तुं न लज्जते । यद्यपि संसारस्थाः सर्वेपि नरनारी- पशुपक्षिगोऽस्यैव कैंकर्यं कुर्वन्ति । अस्याज्ञातो बहिर्भूतो नास्ति खलु कोऽपि जीवः । प्रस्मादेव कारणाद् यावज्जीवं कामपीडापनोदनार्थं नरनारीमिथुनं मिथो मिलित्वा मैथुनं कर्माचरति । यद्यपि
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प्रकार के दुःखरूप गड्ढे में धकेल दिया करते हैं। भले ही चाहे ऐसे वे साधारण जीव मदन के वेग को रोकने में असमर्थ हों - अर्थात् ऐसे जीव भले ही आचार-विचार से रहित होकर निषिद्ध कार्य करके स्वकीय अमुल्य जीवन को गहित बनालें तो इसमें कोई अचरज जैसी बात नहीं है, कारण कि उनकी वृद्धि पर अज्ञान का परदा पड़ा रहता है, परन्तु जो प्रबल पराक्रमशाली हैं, अदम्य उत्साह के धनी हैं एवं प्रदम्य शक्तिशाली सिंह को जो कि एकान्त गहन वन में विचरण करता है तथा मदोन्मत्त भयंकर गजराज को परास्त कर अपने वश में कर लेता है तथा बलिष्ठ सुभटों की सेना को जीतकर जो विजयश्री का सवरण करते हैं, ऐसे वीर नररत्न भी कामराज के बढ़े हुए राग के आगे नतमस्तक - परास्त - हो जाते हैं - उसे वे परास्त नहीं कर पाते हैं। यद्यपि ये समस्त संसारी जीव – नरनारी, पशुपक्षी - इसी कामदेव की आराधना करने में मग्न रहते हैं । इसकी प्रज्ञा के बाहर रहनेवाला कोई भी संसारस्य प्राणी नहीं है । इसी कारण जीवन - पर्यन्त काम पीड़ा को शान्त करने के लिए नर-नारी का जोड़ा परस्पर में मिलकर मैथुन कर्म का सेवन करते हैं । यद्यपि जगत के