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वर्धमानचम्पूः
स्पाधीमागे समवयस्क बालकः सत्रा क्रीडारत श्रासीत् । फणस्टोपं विदधानोः सौ परिवेष्टितवान् महाभयंकरो नागराजो विभीषिका जनयन् मकीड़ापरायणं भास्कराकारं कुमारं विभीषयितुं तस्यानो फूहस्य स्कन्धम् तं करालकालमिव विकरालं वीक्ष्याखिला क्रीडाकरणे तल्लीनाः कुमारा विटपाद् धरित्री निपत्य भयविह्वलाः स्वप्राणान् रक्षितुमिच्छन्तस्तेषु केचिद् यथामार्गमितस्ततस्ततः प्रपलायन्ते स्म चीत्कार ध्वनि कुर्वन्तः । केचिच्च संत्रस्ता धरिश्यामेद मूच्छिता मृता इषा भवन् । परन्तु कुमारो ऽसौ वास्तमहिनादी शिष्याएं बोध्यायाः संस्तेनैव सह क्रीडयामास । क्रीडाकरणानन्तरं तमाकृष्य तस्मादनोकहाद् दूरी चकार । राजकुमारस्य
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आमलकी क्रीडा है । इसे बुन्देलखण्ड में "अंडा डायरी" कहते हैं । वृक्ष पर चढ़कर अन्य बालक पहिले से वृक्ष पर चढ़े हुए अन्य बालक को पकड़ते हैं । यह उनके द्वारा न पकड़ा जाये, इसके लिये वह वृक्ष से नीचे कूद पड़ता है । इस तरह से यह कीडा बालक जन खेलते हैं | अपने फण को फैलाकर वह नागराज उस वृक्ष से लिपट गया । नागराज महाभयंकर था । भास्वराकार वाले कुमार को भयभीत करने का उसका अभिप्राय था । विकराल काल के समान उस भयंकर नागराज को देखकर कितने ही बालक तो जो कि खेलने में निमग्न थे डर के मारे वृक्ष से नीचे गिर पड़े और कितने ही उनके साथ अपने प्राणों की रक्षा करने के निमित्त इधर उधर चिल्लाते हुए भाग गये। कितने ही बालक जमीन पर मूच्छित होकर मृतक के जैसे हो गये । परन्तु वर्धमानकुमार उस ग्रहराज को देखकर अस्त नहीं हुए, प्रत्युत वे उस सर्पराज के साथ ही क्रीडा करने लगे । जब वे उससे क्रीडा कर चुके तब इसके बाद उन कुमार ने उसे वृक्ष से खेंच कर दूर फेंक दिया । सर्पराज ने जब राजकुमार वर्धमान की ऐसी निर्भयता
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यह कीड़ा में ने भी की है। इसके फलस्वरूप मेरा वांया हाथ टूटा, जो अभी तक टूटा का टूटा | ठीक नहीं हुआ ।